________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आवा ॥९७०
केवो छे? एनो मालिक कोण छे? विगेरे पूछीने उपाश्रयने याचे. H हवे जे घरनो स्वामी छे, अथवा घरना मालिके तेनी रक्षा माटे जेने सोंप्यु होय, तेनी पासे उपाश्रयनी याचना करे, ते आH
सूत्रम् प्रमाणे हे आयुष्मन! तारी इच्छाथी तुं आज्ञा आपे तो अमुक दिवस आठला भागमां अमे रहीशुं. त्यारे ते वखते गृहस्थ कहे, के तमने केटला दिवस जरुर पडशे? त्यारे साधुए कहेवू, के शीयाळे, उनाळे खास कारण विना एक मास अने चोमासु होय तो चार | ९७०॥ मासनी जरूर छे, एम याचना करवी, त्यारे कदाच गृहस्थ कहे, के मारे तेटलो काळ अहीं रहेवू नथी, अथवा तेटलो काळ वसति है अपाय तेम नथी, त्यारे साधुए ते मकान लेवा, कांइ खास कारण होय तो कहेवू के ज्यां सुधी आप रहो त्यां सुधी अथवा आपना
कवजामां होय त्यां सुधी अमे एमां रहीशुं, त्यार पछी अमे विहार करी जहशें, पण गृहस्थ पूछे, के साधुनी संख्या केटली छे? तो 8 कहेवू, के अमारा आचार्य समुद्र जेवा छे, तेथी परिमाण नक्की नथी, कारण के कार्यना अर्थीओ केटलाक आवे, अने भणवा विगेहै रेनु कृत्य थइ रहेता केटलाक जाय छे, तेथी जेटला हाजर हशे, तेटला माटे याचना छे, अर्थात् साधुए घरधणी साथे साधुनुं परिमाण नकी न करचुं, बळी
से भिक्खू वा. जस्मुवस्सए संवसिज्जा तस्स पुव्बामेव नामगुत्तं जाणिज्जा, तो पच्छा तस्स गिहे निमंतेमाणस्स वा
अनिमंतेमाणस्स वा असणं वा ४ अफासुयं जाव नो पडिगाहेजा ॥ (म० ९०) ते साधु जेना घरमां निवास करे तेनुं प्रथम नाम गोत्र जाणी ले, त्यार पछी तेना घरमां निमंत्रणा करे, अथवा न करे तो पण चारे कारनो अमासुक आहार ग्रहण न करे (नाम-गोत्र पूछ्वानुं कारण ए छे के आवेला साधु परोणाओ सुखेथी घर पूछता आवी शके.)
For Private and Personal use only