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सूत्रम्
आचा०
त्रीजो उद्देशो, बीजो कह्या पछी त्रीजो उद्देशो कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध हे, गया उद्देशामां अल्पक्रियावाळी शुद्ध वसति बतावी. अहीं | ॥९६५॥ 3/ पण प्रथम सूत्रथी तेथी विपरीत शय्या बतावे छे.
से य नो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिजे नो य खलु सुद्धे इमेहिं पाहुडेहि, तंजहा-छायणओ लेवणो संथारदुवारपिहणओ पिंडवाएसणाओ, से य भिक्खू चरियारए ठाणरहे निसीहियारए सिज्जासंथारपिंडवाएसणारए, संति भिक्खूणो एवमक्खाइणो उज्जुया नियागपडिवना अमायं कुब्बाणा वियाहिया, संतेगइया पाहुडिया उक्खित्तपुब्बा भवइ, एवं निक्खित्तपुव्वा भवइ, परिभाइयपुब्बा भवइ, परिभुत्तपुब्बा भवइ परिदृवियपुवा भवइ, एवं वियागरेमाणे समियाए वियागरेइ ?, हंता भवइ ।। (मू० ८७)
अहिं कोई वखत कोइ साधु वसति शोधवा माटे अथवा भिक्षा लेवा माटे गृहस्थने घरे जतां कोई श्रद्धालु श्रावक आ प्रमाणे 18 कहे, के आ गाममां घणुं अन्न पाणी मळे छे, माटे अहियां आपे वसति याचीने रहे, योग्य छ,द आ प्रमाणे कहेवाथी साधु कहे, के हे श्रावक :पिंड ( अन्न पाणी) प्रामुक (निर्दोष) दुर्लभ नथी पण ते मळवा छतां ज्यां।
बेसीने गोचरी करीए ते आधाकर्मादि दोष रहित उपाश्रय मळयो दुर्लभ छे, तेम 'उं छ' एटले छादन विगेरे उत्तर गुणना दोषथी| पण रहित होय ( ते मळवो दुर्लभ छे) तेज बतावे छे
SARORE
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