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८९९॥
आचा०
इयं वियालं पडिपड़े पेहाए सइ परक्कमे संजयामेव परकमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छिज्जा । से भिक्खू वा० समाणे
अंतरा से उवाओ वा खाणुए वा कंटए वा घसी वा भिलुगा वा विसमे वा विज्जले वा परियाजिज्जा, सइ ॥८९९॥
परकमे संजयामेव, नो उज्जुयं गच्छिज्जा ।। (मू. २७)
ते भिक्षु रस्तामा जतां ध्यान राखे, अने जो त्यां ए, जाणे के रस्तामां गाय, गोधो विगेरे छे, अने ते मारकणो होवाथी * रस्तो बंध छे, अथवा झेरी साप छे, जंगली भेंस के पाडो छे, दुष्ट मनुष्य छे, घोडो हाथी, सिंह, वाघ, वृक (वरगई ),
चित्रो, बळद सरभ, जंगली डुक्कर, कोकंतिक, शीयाळना आकार- लोमडी जे, जनावर छे, जे रातमा कोको एम आरडे | 3 छे, चित्ता, चिल्लडय के जंगली जानवर छे. तेवू कोइपण दुःखदायी माणी रस्तामां मालूम पडे तो प्रथम उपयोग दइने खात्री | FI करे, अने चीजो रस्तो होय तो ते सीधे रस्ते न जतां भय विनाना रस्ते जाय, तेज प्रमाणे मार्गमा खाडो होय ठं? होय | कांटा होय, ढोकाव होय, काळी फाटेली माटी होय, उंचानीचा टेकरा होय, कादव होय, तेवी जग्याए बीजो मार्ग होय तो है चक्रावो खाइने पण ते रस्ते जq. पण दुका सोधा रस्ते न जq. कारण त्यां जवाथी सयमनी तथा पोतानी विराधनानो संभव छे.
से भिक्खू वा० गाहावइकुल्लस दुवारवाई कंटगबुंदियाए परिपिहियं पेहाए तेसिं पुवामेव उग्गई अणणुनविय अपडिलेहिय अप्पमज्जिय नो अवंगुणिज्ज वा पविसिज्ज वा निक्खमिज्जवा, तेसि पुन्नामेव उग्गह अणुन्नविय पटिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिय पमज्जिय तो संजयामेव अवंगुणिज्ज वा पबिसेज्ज वा निक्खमेज्ज वा।। (मू०२८) ते साधु गृहस्थने धेर गोचरी जतां ते घरनुं बार[ दीधेलं जोइने ते घणीनी रजा लीधा विना, आंखथी जोइने रजो
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