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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ६०६ ] [प्राचाराग-सूत्रम् भावार्थ-जिस शिशिर ऋतु में ठंडी हवा चलती है, लोग थरथर कांपते हैं, जब दूसरे कई साधु ( अन्यतीर्थी अमि सुलगाते हैं, गर्म कम्बल आदि खोजते फिरते हैं ) वायु न आ सके ऐसा बन्द स्थान खोजते हैं ॥१३॥ कई साधु दो-तीन वस्त्र धारण करने का सोचते हैं, कई तापस ईन्धन जलाते हैं, कई कम्बल से शरीर ढंककर शीत सहन करने की सोचते हैं, इस प्रकार जब ठंड सहन करना बड़ा कठिन होता है ॥१४॥ उस शिशिरऋतु में वे संयमीश्वर भगवान् इच्छारहित होकर किसी वृक्षादि के नीचे रहकर ठन्ड सहन करते थे । किसी समय अत्यधिक शीत से बाधित होने पर मुहूर्त मात्र रात्रि में बाहर रहकर समभाव से अन्दर आकर ध्यानस्थ होकर शीतस्पर्श सहन करते थे ॥१५॥ मतिमान् माहन भगवान् ने बिना किसी कामना के इस विधि का पालन किया । अन्य मुमुक्षु साधक भी इसी प्रकार इस विधि का अनुसरण करते हैं ऐसा मैं कहता हूँ।।१६॥ इति द्वितीयोद्देशक For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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