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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अष्टम अध्ययन [५४७ सूत्रकार ने सूत्रों में प्रतिज्ञा का कथन किया है इस पर से यह फलित होता है कि प्रत्येक साधक को अवश्यमेव प्रतिज्ञा करनी चाहिए। साथ ही की हुई प्रतिज्ञा का प्राणान्त तक निर्वाह करना चाहिए। प्रतिज्ञा में मेरु को कंपाने, पृथ्वी को चलित करने और हिमालय को हिलाने की दिव्य चेतना शक्ति है। प्रतिज्ञा के द्वारा पतन के गर्त में गिरते हुए व्यक्ति की रक्षा होती है । प्रतिज्ञा के दुर्ग में कोई विकार प्रवेश नहीं पा सकता। प्रतिज्ञा गिरे हुए का उद्धार करती है और गिरने से बचाती है । प्रतिज्ञा से संकल्पबल अति दृढ़ होता है और साधना संकल्पबल की दृढ़ता से ही सफल होती है। अतएव प्रतिज्ञा का पालन करने में अपने प्राणों की आहुति देने के लिए साधक को सदा तत्पर रहना चाहिए। साधना की सफलता के लिए प्रतिज्ञा-पालन की आवश्यकता है। साधक को खान-पान वस्त्रादि में मर्यादित रहने की, महाव्रतों को पालने की, नियमोपनियमों में दृढ़ रहने की, सेवाशुश्रूषा की टेक की आदि २ प्रतिज्ञाएँ अवश्य स्वीकारनी चाहिए और प्राणार्पण तक उसका पालन करना चाहिए । प्रतिज्ञा की अपूर्व शक्ति पूर्वाध्यासों से खिंचाते हुए साधक को साधना में स्थिर करती है। अतएव प्रतिज्ञा का पालन दृढ़ता से करना साधक का कर्त्तव्य है। __इति पञ्चमोद्देशकः For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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