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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २] [ आचाराङ्ग-सूत्रम् गर्भ से मुक्त होता है वह जन्म से मुक्त होता है, जो जन्म से मुक्त होता है मह मृत्यु से मुक्त होता है, जो मृत्यु से मुक्त होता है वह नरक से मुक्त होता है, जो नरक से मुक्त होता है वह तिर्यंच से मुक्त होता है, जो तिच से मुक्त होता है वह दुख से मुक्त होता है । इसलिए बुद्धिमान् क्रोध, मान, माया, लोभ, राग-द्वेष एवं मोह से पृथक होकर गभ, जन्म, मृत्यु नरक गति और तिर्यंच गति के दुखों से निवृत्त हो । यह द्रव्य-भाव-शस्त्र से रहित संसार से पार हुए सर्वज्ञों का अनुभव पूर्ण कथन है। कर्म के आस्रवों को ( मूल कारणों को ) छेद करके पूर्वकृत कर्मों का अन्त करना चाहिए । सर्वज्ञ तत्वदर्शी के उपाधि है 'या नहीं ? नहीं है । ऐसा मैं कहता हूँ । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विवेचन - इस सूत्र में त्याग के फल का उपसंहार करते हुए सूत्रकार कषाय और कषायों से होने वाली स्थिति से लगाकर भव-भ्रमण तक का सारा क्रम बताते हैं । इस सूत्र में दोषों का तथा उनके - त्याग का क्रम बताया गया है। दोषों की चिकित्सा भी बता दी गई है। संसार के रहस्य की समीक्षा भी है । पहिले यह कह दिया गया है कि जो एक का क्षय करता है वह दूसरी अनेक प्रवृत्तियों का करता है। जो क्रोध का क्षय करता है वह साथ ही मान आदि अन्य प्रकृतियों का भी नाश करता है । यहाँ सूत्रकार ने विशदता से वर्णन करने के लिए अलग २ प्रकृतियों का नामनिर्देश किया है। जिस प्रकार घड़ी के एक चक्र के चलने से अन्य पुर्जे चलने लगते हैं और चक्र के रुक जाने से अन्य पुर्जे भी रुक जाते हैं अर्थात् चक्र की चाल का अच्छा या बुरा असर सभी पुर्जों पर पड़ता है इसी तरह प्राणी के एक गुण का या एक दोष का असर उसके सारे गुणों और दोषों पर अवश्य पड़ता है । हाँ, यह हो सकता है कि वह अल्प या अधिक मात्रा में पड़े। इसी कारण कभी तो वह प्रभाव दिखाई देता है और कभी नहीं भी दिखाई देता है लेकिन यह मानना ही पड़ता है कि एक गुण का या एक दोष का असर दूसरे पर अवश्य पड़ता है । यह दिखाई देता है कि एक व्यक्ति क्रोधी होता है और एक व्यक्ति अभिमानी होता है । क्रोधी में अभिमान और अभिमानी में क्रोध सामान्यतया नहीं दिखाई देता है • लेकिन अगर क्रोधी के क्रोध का और श्रभिमानी के अभिमान का विश्लेषण किया जाय तो मालूम होगा कि क्रोध में अभिमान रहा हुआ है और अभिमान में क्रोध की मात्रा रही हुई है । क्रोधी व्यक्ति में अभिमान -दिखाई नहीं देता है इसका कारण अभिमान का नाश हो गया है यह नहीं है वरन् इसका कारण निमित्तों की अनुपस्थिति है। वैसे निमित्त मिलते ही क्रोधी अभिमानी हो जाता है, अभिमानी निमित्त मिलने पर हो जाता है । तात्पर्य यह है कि एक भी दुर्गुण विद्यमान है तो वह दूसरे दुर्गुण को जन्म देता है । एक दोष दूसरे दोष का कारण हो जाता है। इसलिए शास्त्रकार कहते हैं कि जो क्रोधी है वह मानी भी है, मायी भी है, लोभी भी है, रागी भी है, द्वेषी भी है और मोही भी है। जो क्रोध का त्यागी हैं वह मान का, माया का, लोभ का, राग का द्वेष का और मोह का भी त्यागी है। जिसमें एक सद्गुण का विकास होता है तो उसका असर सभी क्षेत्रों में दृष्टिगोचर होता है। एक . सद्गुण दूसरे सद्गुणों का जनक होता है । उस सद्गुण का प्रकाश जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पड़ता है ' तभी वह सच्चा सहज विकास कहलाता है । जो व्यक्ति धर्मस्थान में असत्य नहीं बोलता है परन्तु जीवनव्यवहार की क्रियाओं में कपड़ा मापने में, माल देने लेने में, झूठ बोलता है तो वह सत्य का सहज विकास For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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