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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६६ ] www.kobatirth.org इत्थं लब्धवरोऽथ तेष्वपि कदाप्यश्नात्यहो द्वि सचेत्, Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भ्रष्टो मर्त्यभवात्तथाप्यसुकृती भूयस्तमाप्नोति न || [ आचाराङ्ग-सूत्रम् (१) अर्थात् - किसी दरिद्र ब्राह्मण पर चक्रवर्ती राजा ब्रह्मदत्त प्रसन्न हो गये। उन्होंने उसे इच्छित वरदान मांगने की स्वीकृति दे दी । ब्राह्मण ने कहा मुझे यह वरदान दीजिये कि "आपके राज्य में सम्पूर्ण भरत क्षेत्र में - प्रतिदिन एक घर में मुझे भोजन करा दिया जाय। जब सब घरों में भोजन कर लूँगा तो दूसरी बार भोजन करना आरम्भ करूँगा ।" राजा ने 'तथास्तु' कह दिया । इस प्रकार जीमते जीमते सम्पूर्ण भरत क्षेत्र के घरों में जीम चुकने पर दूसरी बार बारी आना बहुत ही कठिन है । वह सारे जीवन एक बार भी सभी घरों में नहीं जीम पाएगा। परन्तु कदाचित् यह सम्भव हो जाय परन्तु प्राप्त मनुष्य भव को जो व्यक्ति वृथा खो देता है उसे पुनः मनुष्य-भव प्राप्त होना अत्यन्त कठिन है । (२) एक सौ आठ कोने वाले एक हजार आठ स्तम्भों को जूबे में एक भी बार बिना हारे भले ही एक सौ आठ बार जीत ले और इस प्रकार पुत्र अपने पिता से साम्राज्य प्राप्त कर ले - यह घट घटना भले ही घट जाय पर मनुष्य-भव को एक बार वृथा खो देने वाले पुरुष को पुनः उसकी प्राप्ति कठिन है । (३) सम्पूर्ण भरत क्षेत्र के गेहूं, जौ, मक्की, चना आदि सभी धान्यों को एक जगह इकट्ठा किया जाय और उस एकत्रित ढेर में थोड़े से सरसों के दाने डाल दिये जाये और अच्छी तरह उन्हें हिला दिया जाय । फिर एक क्षीण नेत्र ज्योति वाली वृद्धा से कहा जाय कि इस ढेर से सरसों बीन बीन करके अलग कर दें | वह वृद्धा ऐसा करने में समर्थ नहीं हो सकती । परन्तु किसी अदृष्ट दिव्य शक्ति के द्वारा वह ऐसा करने में समर्थ भी हो जाय तो भी मनुष्य-भव पाकर उसे यों ही बिताने वाले को पुनः उसकी प्राप्ति इससे भी अधिक कठिन है | (४) एक धनी सेठ के पास बहुत रत्न थे। एक बार वह परदेश चला गया और पीछे से उसके पुत्रों ने उसके बहुमूल्य रत्न बहुत थोड़े मूल्य में बेच डाले । रत्न खरीदने वाले वणिक् विभिन्न दिशाओं में चले गये । सेट परदेश से लौटा और अपने पुत्रों की करतूत जानकर क्रुद्ध हुआ । उसने अपने पुत्रों को आज्ञा दी - जाओ और वे सब रत्न वापिस ले आओ। सब पुत्र घर से निकले और इधर उधर घूमने लगे। क्या वे समस्त रत्न वापिस ला सकते हैं ? नहीं । देवयोग से कदाचित वे इस काम में सफलता प्राप्त कर लें परन्तु पुनः मनुष्य-भव मिलना इससे भी अधिक कठिन है । For Private And Personal (५) एक भिखारी को रात्रि के अन्तिम प्रहर में स्वप्न आया कि उसने पूर्णमासी का चन्द्रमा निगल लिया है। उसने अपने स्वप्न का हाल अन्य भिखारियों से कहा । भिखारियों ने स्वप्न का फल प्रकट करते हुए कहा कि तुमने पूर्ण चन्द्रमा स्वप्न में देखा है इसलिए आज तुम्हें उसी आकार का पूरा रोट भिक्षा में मिलेगा। भिखारी को सचमुच उस दिन एक रोट मिल गया । उसी रात्रि में, उसी ग्राम में एक क्षत्रिय ने भी ऐसा ही स्वप्न देखा। उसने स्वप्नशास्त्रियों के पास जाकर स्वप्न का फल पूछा । उन्होंने बताया कि तुम्हें सम्पूर्ण राज्य की प्राप्ति होगी । संयोगवश उसी दिन उस ग्राम के राजा का देहान्त हो गया। वह निस्संतान था । प्राचीन काल की प्रथा के अनुसार सूँड में फूलमाला देकर हथिनी छोड़ी गई | वह जिसके गले में माला डाल दे वही राज्य का स्वामी बनाया जाय । हथिनी फूलमाला लिए घूमती हुई उसी राजपूत के पास आई और उसके गले में माला डाल दी । परम्परानुसार वह राजा बनाया
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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