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विकृतिविज्ञान
बने तो वे स्वरयन्त्रीय श्ले मलकला से कहीं भी बन सकते हैं। जितना ही रोगी तरुण या युवा होता है उसके स्वरयन्त्र में उतने ही अधिक अंकुरार्बुद बनते हुए देखे जाते हैं । जब स्वरयन्त्रदर्शक द्वारा स्वरयन्त्र देखा जाता है तो वे श्वेत वर्ण के चमकीले सरलतया पहचाने जा सकते हैं । जब उनकी संख्या बहुत अधिक होती है तो फिर श्लेष्मलकला इतनी घिर जाती है कि उसे फिर देखना ही कठिन हो जाता है ।
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स्वरयन्त्रीय अङ्कुरार्बुद सदैव शलकीय अर्बुद होते हैं और शल्काधिच्छद द्वारा ही बनते हैं । ये बच्चों, गायकों और वक्ताओं में बहुत अधिक देखे जाते हैं । इनका उच्छेद कर देने पर छोटी अवस्था के रोगियों में ये पुनः उत्पन्न हो जाते हैं परन्तु रहते साधारण ( benign ) ही हैं तथा कभी-कभी जादू की तरह ठीक भी हो जाते हैं। बड़ों में वे दुष्ट होने की प्रवृत्ति से युक्त हो जाते हैं और उनकी पुनरुत्पत्ति छोटों से कहीं अधिक देखी जाती है ।
स्वतन्त्री के किनारे बना चर्मकील कभी-कभी पूर्णतः वाग्शक्तिनाश ( aphonia ) कर देता है । कभी-कभी अनेक चर्मकील रहने पर भी रोगी की वारशक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बच्चों में बहुत से चर्मकीलों के कारण इतना श्वासावरोध होने लगता है कि कण्ठनालिकोच्छेद ( tracheotomy ) तक करनी पड़ सकती है।
३- तालुस्थ अङ्कुरार्बुद (Papillomata of the Palate )
जिह्वा और कपोलों में स्थित चर्मकील के ही समान तालु में अङ्कुरार्बुद बनता है । तालु में यह दन्तमांस से जाता है । इसके साथ स्वस्थ सितघटन ( leucoplakia ) भी रहता है ।
४—जिह्वास्थ अङ्कुरार्बुद (Papillomata of the Tongue )
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साधारणतया जिह्वा पर अदुष्ट या साधारण अर्बुद नहीं रहा करते पर जब उनका पाया जाना सम्भव होता है तो उनमें अंकुरार्बुद का पर्याप्त महत्व रहता है । जिह्वा पर चर्मकील उसके धरातल पर कहीं भी बन सकते हैं। किसी भी अवस्था में बन सकते हैं । जो चर्मकील या अंकुरार्बुद बनता है वह विनालया सनाल कैसा ही हो सकता है 1 वह शूल विहीन होता है और उसके कोशाओं की भरमार या काठिन्य भीतरी भागों में बिल्कुल नहीं होता । न समीपस्थ ग्रन्थियाँ ही प्रवृद्ध होती है और न उससे रक्त का स्राव ही होता है । ऐसा लगता है कि यह चर्मकील जिह्वास्थ किसी छत्राङ्कुर ( fungiform papillae ) से उत्पन्न होता है । यह दुष्टरूप धारण कर ले सकता है अतः जिह्वा के कुछ अंश के साथ इसका उच्छेद करना शल्यविद् के लिए एक अत्यावश्यक घटना रहनी चाहिए ।
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