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विकृतिविज्ञान अंकुरीय कोष्ठ ग्रन्थ्यर्बुदों से बहुधा उत्पन्न होने के कारण बीजकोषीय कर्कटों के कोशा प्रकार लस्य वा कूटश्लेषि कोष्ठों जैसे होते हैं। भेद इतना ही होता है कि वे सपक्ष्म (ciliated ) नहीं होते हैं। अधिकांश कर्कटों में कोशा स्तम्भाकार होते हैं तथा केवल कुछ ही स्थलों पर शायद विशल्कीय कर्कट कोशा देखने में आते हैं। विशल्कीय कर्कट कोशा का प्रकार निचर्माभ कोष्ठ (dermoid cyst) में मिलता है। कर्कट सदैव रोहिअधिच्छद (germinal epithelium) में बना करता है। साधारण कर्कट में कोशाओं का विभिन्नन नष्ट हुआ रहता है और वे गोलाभ हो जाते हैं। इससे गोल या कड़े अश्मोपम कर्कट बनते हैं। इनमें कड़ापन संधार के अनुपात पर निर्भर करता है।
उत्तरजात-बीजकोषों के विस्थाय कर्कट बहुधा देखे जाते हैं । ये दो मुख्य स्थलों से बनते हैं। एक तो वे जो गर्भाशय या उसकी नालिकाओं के प्रथमजात कर्कटों से उत्पन्न होते हैं। इनके प्रसार का मुख्य साधन लसधारा होता है। दूसरे वे जो आमाशय वा बृहदन्त्र या महास्रोत के अन्य भार्गों द्वारा उत्पन्न होते हैं। महास्रोतोत्थ कर्कट सघन होते हैं। ये रक्तधारा द्वारा आते हैं या पारउदरिक वपन (transcoe. lomic inplantation) द्वारा इसे अभी निश्चिति से नहीं कहा जा सकता। ग्लौक्नर का कथन यह है कि उदर के किसी स्थल से कर्कट कोशा नीचे की ओर लुढ़क कर डगलस की जेब में एकत्र हो जाते हैं। वहाँ से वे बीज कोषों में प्रवेश करते हैं । यह प्रवेश या तो रोहिअन्तश्छद द्वारा होता है या विस्फोटित कूपिकाओं (ruptured follicles ) द्वारा यह नहीं कहा जा सकता है । परन्तु ग्लौक्नर का यह मत अधिक मान्य नहीं है।
२-गर्भाशय कर्कट ( Carcinoma of the Uterus )
__ गर्भाशय के कर्कट उसकी ग्रीवा तथा काया दोनों स्थलों में होते हैं। दोनों का वर्णन नीचे दिया जाता है:
गर्भाशयग्रीवा कर्कट ( Cervical Cancer )-गर्भाशय काया की अपेक्षा उसकी ग्रीवा में कर्कट बहुत अधिक मिलते हैं। काया और ग्रीवा में होने वाले कर्कट आपस में इतने भिन्न होते हैं कि उन्हें दो पृथक् रोग मानना अधिक उपयुक्त है। ग्रीवा का कर्कट ३५ वर्ष से लेकर ६० वर्ष तक की उन स्त्रियों में अधिक देखा जाता है जो प्रजावती होती हैं। ९५ प्रतिशत माताओं में यह रोग होता है । परन्तु क्या इसका कारण न्यासर्गिक ( hormonal ) है ? न्यासर्गिक की अपेक्षा ग्रीवा का प्रसव काल में विदीर्ण होना अधिक महत्वपूर्ण है। गर्भाशय ग्रीवा का आघात अधिकतम नैदानि. कीय दृष्टि से पूर्ण हैतुकी है। परन्तु आज इस हैतुकी पर भी सन्देह होता है क्योंकि शरीर में अन्यत्र किसी भी स्थल पर ऐसा नहीं देखा जाता कि आघात कर्कटजनक हुआ हो या होता हो। हौफबौअर का कथन है कि गर्भाशयग्रीवा का अन्त
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