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अर्बुद प्रकरण
(६) मूत्रसंस्थान के कर्कट १–वृक्ककर्कट ( Renal Carcinoma )
वृक्क के जीवितक से उत्पन्न होने वाले कर्कटों को अतिवृक्कार्बुद ( hyperneph. roma ) या प्रावित्झार्बुद (Grawitz tumours ) कहा जाता है । ग्रावित्झ नामक वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम यह बतलाया था कि इन अर्बुदों के उपरिष्ठ कोशा अधिवृक्क के बाह्यक से मिलते हैं।
वृक्ककर्कटों का प्रत्यक्ष दर्शन एक विशिष्ट प्रकार का होता है। ये प्रायः बड़े और रंग में पीले होते हैं। उनके ऊपर अनेक ऊतिनाश और रक्तस्रावप्रदर्शक क्षेत्र होते हैं । रक्तस्त्रावी क्षेत्रों का पाया जाना इनकी बहुत महत्त्वपूर्ण विशेषता बतलाई जाती है। कभी-कभी तो रक्त से भरे हुए कोष्ठ (cysts) भी इतस्ततः देखे जा सकते हैं। कर्कट के ऊपर एक प्रावर जो पर्याप्त पुष्ट होता है, चढ़ा रहता है जिसका निर्माण वृक्क प्रावर द्वारा तथा पीड़न के कारण नष्ट हुई समीपस्थ ऊतियों तथा उनके तन्तूत्कर्ष द्वारा होता है। यह प्रावर हर स्थल पर एक बराबर दृढ़ नहीं होता और न उसकी मोटाई सर्वत्र एक सी रहती, इसी कारण कहीं-कहीं वह छिद्रित भी हो जाता है। वृक्क के भीतर कर्कट के कोशाओं की भरमार होने लगती है तथा वृक्त ऊति का नाश भी होने लगता है। इसके कारण सम्पूर्ण वृक अन्त में एक अर्बुद का ही रूप धारण कर लेता है। वृक्क के कर्कट उसके उत्तरीय, मध्यवर्ती या दक्षिणी ध्रुव में कहीं भी बन सकते हैं। वृक्कमुख पर आक्रमण का होना और गवीनी का अवरोध होकर उवृक्कोस्कर्ष ( hydronephrosis ) का बनना भी एक स्वाभाविक घटना हो सकती है। बहुधा ये वृद्धियाँ एक ही वृक्क में मिलती हैं पर वे कभी-कभी दोनों ओर भी पाई जा सकती हैं। ऐसी अवस्था में एक में कर्कट बहुत बड़ा और दूसरे में थोड़ा छोटा देखा जा सकता है । छोटा कर्कट बड़े कर्कट का विस्थाय ज्ञात होता है।
वृक्क के कर्कट पर्याप्त दुष्ट होते हैं। इस कारण वे पर्याप्त ही विस्थायों के जनक भी होते हैं। अधिवृक्कीय कर्कटों की भाँति ही इनकी प्रवृत्ति सिराओं को आक्रान्त करने की भी रहती है। इसलिए वे वृक्कसिरा ( renal vein) या उत्तरा महासिरा के किनारों पर भी देखे जा सकते हैं। इसके कारण विस्थाय लसवहाजन्य न होकर रक्तवाहिनीजन्य हुआ करते हैं। इन्हीं सबका परिणाम यह होता है कि वृक्क कर्कटो के उत्तरजात विस्थाय फुफ्फुसों में बनते हैं। ये विस्थाय सूक्ष्म भी हो सकते हैं और पर्याप्त स्थूल भी । सूक्ष्म वा स्थूल, रक्त द्वारा ये अस्थियों तक जा सकते हैं और वहाँ उनका पुनरुपसर्ग कर सकते हैं। अस्थियों में अपरदन हो जाता है जिसके कारण वैकारिक अस्थिभन्न उत्पन्न हो जाते हैं। इन्हीं अस्थिभन्नों द्वारा वृक्कीय कर्कट की उपस्थिति का बहुधा ज्ञान भी हुआ करता है। अस्थि में इस प्रकार विस्थाय प्रगण्डास्थि के ऊर्ध्वशीर्ष में या किसी कशेरुका में होता है । यह विस्थाय प्रायः एक ही मिलता है।
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