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विकृतिविज्ञान
कई प्रकार होते हैं । इनमें ग्रन्थिकर्कट एक है । यह साङ्कुर ( papillary ) तथा कवकान्वित ( fungating ) होता है। इसके कारण पित्ताशय का सुषिरक भर तक जाता है क्योंकि यह वृद्धि पर्याप्त ठोस या प्रपुञ्जित (bulky) होती है । यह आगे चल कर श्लेषाभ विहासयुक्त हो जाती है । साधारणतया ग्रन्थिकर्कट एक अश्मोपम वृद्धि के रूप में भी प्रकट होता है जिसमें एक ग्रन्थीय रचना सरलतापूर्वक स्थित रहती है। तथा साथ में सघन तान्तव संधार रहता है । जब वह संकुचित होता है तो पित्ताशय में निरोधोत्कर्ष वा अवरोध कर देता है ।
कभी-कभी अवकाशिकीय रूप में सामान्य कर्कट ( carcinoma simplex ) दिखलाई देता है । इसमें कर्कट के कोशा गोलाभ ( spheroidal ) हो जाते हैं उसमें ग्रन्थीय रचना कोई भी नहीं होती । कोशा बड़े द्वीपों के समान जिसमें बहुत थोड़ा संधार रहता है, पाये जाते हैं । यह संधार कोशा पुंजों के बीच-बीच में रहता है । कभी-कभी परन्तु बहुत ही कम ऐसा भी देखा जाता है जब सामान्य कर्कट गोलकोशीय कर्कट ( round cell carcinoma ) के रूप में देखा जाता है । यह प्रसरतया अन्तराभरण करता है । इसके क्षुद्र, गोल, अधिक रंजनशील कोशा विशिष्ट प्रकार के हुआ करते हैं । इसे पहले गोलकोशीय संकटार्बुद कहा जाता था ।
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पित्ताशयिक कर्कट के साथ गहरा कामला रहा करता है । पित्ताशय से उत्तरजात वृद्धि लसवहाओं द्वारा या सीधे प्रत्यक्ष संबन्ध होने के कारण यकृत् में हो जाती है इसके विस्थाय पित्तकोषनलिकीय ( cystic ) ग्रन्थि में तथा महाधमनी पूर्व की ग्रन्थियों में पाये जाते हैं ।
यह भूलना न चाहिए कि ८० प्रतिशत रोगियों में कर्कट की उत्पत्ति तभी होती है जब पित्ताश्मरियों से पित्ताशय संत्रस्त हो । पर यतः पित्ताश्मरी बहुधा स्त्रियों को होती है अतः पित्ताशयिक कर्कट पुरुषों की अपेक्षा खियों में बहुत होता है ।
५ - सर्व किण्वीय कर्कट ( Cancer of the Pancreas )
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सर्व किण्वी अथवा क्लोम ग्रन्थि ( pancreas ) में प्रथमजात कर्कट बहुधा मिला करता है । स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष इससे अधिक ग्रस्त होते हैं । ग्रन्थि के शीर्ष भाग में प्रायः यह रोग हो जाता है तथा इसके लक्षण बहुत अस्पष्ट होते हैं । इसी कारण इस रोग का निदान करना बहुत कठिन पड़ता है निरन्तर दुःस्वास्थ्य ( cachexia ) तथा उदर में ऐसा शूल जिसका कोई विशेष स्थान न हो ये दोनों लक्षण बहुधा मिला करते हैं । कुछ काल पश्चात् जब ग्रहणी प्राचीर में व्रणन और रक्तस्राव होने लगता है। तो मल में रक्त का मिलना भी एक स्थायी घटना बन जाती है । आगे चलकर जब यह वृद्धि पित्तप्रणाली को अवरुद्ध कर देती है तो पित्तप्रणाली के अवरोध से उत्पन्न कामला उत्पन्न हो जाता है ।
सर्ववी कर्कट के दो रूप होते हैं। एक वह जो सर्वकिण्वी के अधिच्छद से उत्पन्न होता है और जो स्तम्भकोशीय अश्मोपम ग्रन्थिकर्कट ही होता है । इसके साथ संधार
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