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विकृतिविज्ञान तो फुफ्फुस का सम्पूर्ण अधिच्छद श्वसनिकीय स्तर से बनता है और अण्वीक्षतया गर्भफुफ्फसीय चित्र में प्रमाणित भी हो जाता है। इसलिए ऐसा मानना पूर्णतः ठीक है कि कि फुफ्फुस के सम्पूर्ण कर्कट उत्पत्ति से श्वसनिकाजनित ( bronchogenic ) ही होते हैं । कोशाओं के आकार में जो अन्तर होता है वह स्थान विशेष के कारण न होकर उनके विभिन्नन के कारण होता है।
प्रत्यक्ष देखने से फुफ्फुस कर्कट को ३ श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है:(१) वृन्तीय ( hilus ), (२) अवकाशिकीय या श्यामाकसम ( miliary ) तथा (३) प्रसर ( diffuse ),
वृन्तीय कर्कट सबसे अधिक, लगभग ९० प्रतिशत तक पाया जाता है यह श्वसनिकाजनित होता है, यह किसी श्वासनाल में आरम्भ होकर फिर श्वसनिकीय वृह तथा फुफ्फुस पदार्थ में पोंढ़ जाता है। यह केवल श्वासनाल में फुफ्फुस के बाहर भी रह सकता है । श्वासनाल में कर्कट के कारण जो विक्षत बनता है वह श्लेष्मलकला का रौक्ष्य मात्र भी हो सकता है तथा उसके सुषिरक का पूर्णतः अवरोधक भी हो सकता है। यदि पूर्णतः श्वासनालीय सुषिरक का अबरोध ( stenosis ) हो गया तो उसके दूरस्थ भाग में अवपात, उरःक्षत अथवा विद्रधि भवन देखा जा सकता है। प्रायः वृन्तीय अर्बुद खूब कड़ा और ठोस हुआ करता है पर कभी-कभी ऊतिमृत्यु तथा विवरीभवन भी मिल सकता है। वृन्तस्थल पर कर्कटीय उति का बड़ा सा पुंज होने पर भी दूर-दूर पर कर्कटीय पदार्थ के ग्रन्थक ( nodules ) मिल सकते हैं । जब ये कर्कट बढ़ते-बढ़ते फुफ्फुसच्छद तक पहुँच जाते हैं तो वहाँ प्रक्षोभ होकर शोण उत्स्यन्दन ( haemorrhagic effusion ) होने लगता है।
अवकाशिकीय कर्कट बहुत कम पाया जाता है । ये अवकाशिकाओं में कई स्थानों पर होते हैं। कैसिली और ह्वाइट इनको बहुकेन्द्रिय अवकाशिकाजन्य कर्कट ( carci. noma alveogenica multicentrica ) के नाम से पुकारते हैं । न्यूबर्जर इन्हें अवकाशिकीय कोशार्बुद ( alveolar cell tumours ) कहता है। इनका एक नाम श्यामाकसम कर्कट ( miliary cancer ) भी है । पहले दोनों नामों से इसकी उत्पत्ति फुफ्फुसीय अवकाशिकाओं के कोशाओं से होना निश्चित होता है जो यथार्थतः सत्य है।
कर्कट का प्रसर रूप फुफ्फुस खण्डीय श्वसनक के चित्र से मृत्यूत्तर परीक्षा काल में बिल्कुल मिल जाता है। इस कर्कट में फुफ्फुस का एक खण्ड या सम्पूर्ण फुफ्फुस एक ठोस धूसरवर्णीय पुंज के रूप में प्रकट होता है उस समय विना अण्वीक्षयन्त्र की सहायता के श्वसनक और कर्कट में भेद नहीं किया जा सकता।
ऊपर स्थूल रूप से फुफ्फुसीय कर्कटों के विकृत शारीर पर दृष्टिपात किया गया है परन्तु अण्वीक्षण द्वारा विविध कोशाओं की दृष्टि से भी इसका वर्गीकरण चलता है। कोशीयपरिवर्तन जितने फुफ्फुसीय कर्कटों में देखे जाते हैं वैसे अन्यत्र नहीं मिलते।
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