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अर्बुद प्रकरण
४. पित्ताशय कर्कट ( cancers of the gall bladder )।
५. सर्व किण्वीय कर्कट ( pancreatic carcinoma )।
६. अवटुकीय कर्कट (thyroid carcinoma )।
७. पोषणिका ग्रन्थिकर्कट ( cancers of the pituitary body ) । ८. अधिवृक्क ग्रन्थिकर्कट ( cancers of adrenals )।
९. मूत्रसंस्थान के कर्कट ( cancers of urinary system)।
१०. पुरुष प्रजननाङ्गीय कर्कट ( cancers of male genitals )। ११. स्त्रीप्रजननाङ्गीय कर्कट ( cancers of female genitals )। १२. स्तन कर्कट ( cancers of the breast )
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( १ ) श्वसनसंस्थान के कर्कट
मुख, ग्रसनी, तुण्डिका, जिह्वा आदि अंगों की दृष्टि से विचार महास्रोतीय कर्कट. प्रकरण में आगे किया गया है । श्वसनसंस्थानीय कर्कटों में निम्न अंगों के कर्कटों का विचार प्रस्तुत किया जावेगा :
(१) स्वरयन्त्र, (२) फुफ्फुस तथा (३) फुफ्फुसच्छद ।
१ — स्वरयन्त्रीय कर्कट ( Cancer of the Laryux )
स्वरयन्त्र का कर्कट स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में अधिक देखा जाता है । इसके तीन मुख्य हेतु हैं— बोलने का अतियोग, स्वरभेद का हेतु देते हुए शास्त्र में लिखा है
अत्युच्चभाषणविषाध्ययनाभिघातसंदूषणैः प्रकुपितः पवनादयस्तु ।
स्रोतःसु ते स्वरवहेषु गताः प्रतिष्ठां हन्युः स्वरं भवति चापि हि षड्विधः सः ॥ तम्बाकू पीना तथा मद्यपान ।
यह कर्कट प्राथमिक विक्षत ( primary lesion ) के रूप में प्रायः होता है पर कभी कभी जब अवटुका ग्रन्थि, ग्रसनी का गम्भीर भाग अथवा जिह्वामूल में कर्कट हो तो वहाँ से वह स्वरयन्त्र तक जा सकता है ।
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निदान की दृष्टि से स्वरयन्त्रीय कर्कट अन्तः ( extrinsic ) दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है । उनके नीचे की स्वरयन्त्र की श्लेष्मलकला में होता है । यह शल्ककोशीय ( squamous-celled ) होता है इसे अधिचर्माभ कर्कट भी कहा जाता है । इसका विकास बहुत धीरे धीरे होता है और दो वर्ष तक रह सकता है । बहिः कर्कट घाटिका अधि जिह्वीय क्षेत्र ( aryepiglottidean region ), दोनों के खात या अधिजिह्वा पर भी हो सकता है । यह स्तम्भ कोशीय ( columnar-celled ) होता है । इसे अन्तर्वर्ती कर्कट की कोटि में रखा जाता है । इसका विकास बहुत शीघ्र होता है । इसके फल स्वरूप स्वरसादादि विकार बहुत शीघ्र लगते हैं । इसके कारण गले की लसग्रन्थियाँ फूल जाती हैं ।
६१, ६२ वि०
( intrinsic ) तथा बाह्य अन्तः कर्कट स्वरयन्त्री और