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अर्बुद प्रकरण
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ग्रन्थियों की प्रवृद्धि से यह समझना कि उनमें विस्थापन हो गया भूल है । ऐसी दशा में अण्वीक्षण करना अत्यावश्यक होता है ।
लसवहाएँ और लसकोटर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से अर्बुदिक कोशाओं द्वारा अवरुद्ध किए जा सकते हैं । यद्यपि जीर्ण व्रणशोथ के कारण भी अवरोध हो सकता है । लसवहाओं में अर्बुदिक अतिवेधन के कारण लसवहाओं में लसपरिवहन रुक जाता है तथा लस अवरुद्ध भाग का चक्कर लगाकर जाता है । और इस अन्य चक्करदार मार्ग कारण अर्बुदिक कोशा अन्य दिशाओं में तथा अन्य प्रदेशों में विस्थाय उत्पन्न करने में समर्थ हो जाते हैं ।
दूरस्थ प्रदेशों में अर्बुदिक विस्थायों के बनने के लिए उत्तरदायी रक्तधारा होती है। संकटार्बुद कोशा सदैव रक्तधारा द्वारा ही गमन किया करते हैं । इसका कारण या तो यह है कि अर्बुद की वाहिनियाँ कोटाराम (sinusoids ) होती हैं जिनका आस्तरण स्वयं अर्बुदिक कोशाओं का होता है या अर्बुद कोशा सीधे रक्तवाहिनियों के सुषिरों में उत्पन्न होते हैं । वहाँ से कुछ कोशासमूह टूट कर दूरस्थ केशालों में दुष्ट अन्तःशल्यों के रूप में जम जाते हैं । फिर उनसे अभिनव अर्बुद उत्पन्न हो जाते हैं ।
अधिच्छी यादों का प्रसार भिन्न प्रकार से होता है जैसा कह चुके हैं वे लसधारा द्वारा फैलते हैं । लसवहाओं का अतिवेधन या अन्तःशल्यता द्वारा उनका प्रसार होता है । अतिवेधन ( permeation ) में वृद्धिंगत अर्बुदिक कोशा प्राथमिक अर्बुद से निकल कर लसवहा में प्रवेश करते हैं और वहाँ प्राचीर में उगने लगते हैं और किसी भी दिशा में बढ़ने लगते हैं । इस प्रकार एक भाग से दूसरे भाग तक पहुँच जाते हैं । वक्षकर्कट के कोशा औदरिकगुहा में या यकृत् में इसी प्रकार पहुँचते हैं । साथसाथ सौम्य प्रकार का व्रणशोथ चलता रहता है तन्तूत्कर्ष भी होता है जिससे पीडन के कारण अर्बुदिक कोशाओं का पूर्णतः अभिलोपन भी हो सकता है फिर भी अर्बुद प्रसार में कोई बाधा नहीं देखी जाती । जब लसवाहिनी का बहुत भाग तान्तवऊति द्वारा लुप्त हो जाता है तब प्राथमिक और द्वितीयक अर्बुदों में सम्बन्ध जोड़ना कठिन हो जाता है ।
अर्बुद के नैदानिक प्रकार
नैदानिकदृष्टि से ( Clinically ) अर्बुदों को दो स्थूल प्रकारों में विभाजित किया जाता है जिनमें एक प्रकार साधारण अर्बुदों का माना जाता है और दूसरा प्रकार दुष्ट अर्बुदों का कहा जाता है ।
साधारण अर्बुद ( simple tumours ) को निर्दोष अर्बुद ( innocent tumours ) भी कहते हैं । इसका तीसरा नाम मृदु अर्बुद ( benign tumour ) भी है । यह एक स्थानिक वृद्धि होती है । वह शनैः शनैः परन्तु शान्ति से बढ़ती जाती है। जब उसका एक निश्चित आकार बन जाता है तो फिर वह स्थिर हो जाती है। और उसकी वृद्धि रुक जाती है । साधारण अर्बुद की रचना किसी ऋजु एवं प्रगल्भ
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