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विकृतिविज्ञान
यह रोग पशु के द्वारा मनुष्य पर आता है । परन्तु पशु कैसे इसे करता है पता नहीं | ऐसा समझा जाता है कि अन्न की उपसृष्ट बाल या दाने को खाने से यह रोग होता है | परन्तु प्रकृति में कवकोपसृष्ट अन्न के दाने नहीं मिलते । '
मनुष्यों में किरणकवक रोग शनैः शनैः लगता है । शनैः शनैः ही जीर्ण कणनीयार्बुदीय पुंज उपसर्ग स्थली पर बनते हैं जो आगे चलकर पूयन करते हैं। पहले पहल यह रोग त्वचा के नीचे या श्लेष्मलकला के नीचे प्रकट होता है। जिसके फलस्वरूप शनैः शनैः एक बृहत् मांसवर्णीय शोथ (a large brawny swelling) उत्पन्न हो जाता है । जो अधिच्छद इसे ढँके रहता है वह अनेक स्थानों पर टूट है और अनेक नाडीव्रण उसमें से बन जाते हैं । उनमें होकर पतला पूय निरन्तर प्रवाहित होता रहता है । उस पूय में गन्धक के कण बराबर उपस्थित रहते हैं । आधे से अधिक रोगियों में विक्षत सिर और ग्रीवा में देखा जाता है विशेष करके अधोहनु ( lower jaw ) में। उसके पश्चात् शेषान्त्रकोण्डुकीय क्षेत्र (ileocaecal area ) में भी यह बहुत मिलता है जिसके कारण ऐसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे जीर्ण उण्डुकपुच्छपाक का सन्देह होने लगता है । कभी कभी तथा बहुत ही कम यह फुफ्फुस या वचा में भी मिलता है ।
इस रोग में चंचलता बिल्कुल नहीं होती । रोग बहुत मन्थरगति से चलता है इसमें पूयन होता है । यह एक स्थान विशेष पर उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए सर्वाङ्गीण प्रवृत्ति रखता है । इसमें ऊतियों का स्थानिक नाश खूब होता है अस्थि का भी नाश होता है, मृदु ऊतियों में तन्तूत्कर्ष होना इस रोग का प्रधान लक्षण माना जाता है ।
छेद ( section ) लेने पर इस रोग के विक्षत मधुमक्खी के छत्ते ( honey comb) के समान दिखलाई देते हैं। जिनमें से पूयीय स्राव निचोड़ा जा सकता है । इस स्राव में प्रत्यक्ष पीतवर्ण के गन्धक के कण स्पष्ट देखे जा सकते हैं । इस रोग की गाँठें कन ऊति द्वारा बनती हैं जो भीतर से तान्तव ऊति के पट्टों से कई खानों में बँटी रहती हैं । अण्वीक्षण करने पर किरणकवक के कणों के चारों ओर पूयकारी कोशा देखे जाते हैं। गुहाओं की प्राचीरों में अन्तश्छदीय प्रगुणन होता है तथा कभी कभी महाकोशा भी मिलते हैं । औपसर्गिक नाभि के चारों ओर सघन तान्तव ऊति का प्रगुणन होता रहता है । यह तान्तव ऊति वास्तविक जीवित ऊति का पाशन ( strangulation ) करके उसे घोंट देती है ।
कवक के तीन मार्ग
किरणकवक निम्न ३ मार्गों में से किसी के द्वारा भी प्रवेश कर सकता है:२. श्वसनमार्ग,
१. मुख,
३. आन्त्र ।
1. 'Actinomycoses bovis has never been found in grains or grasses in a state of Nature ( ब्वायड )
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