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विकृतिविज्ञान
प्लोहा पर फिरंग का प्रभाव वयस्कों में फिरंग रोग होने पर उसका कोई विशेष प्रभाव प्लीहा पर पड़ता हुआ नहीं देखा जाता बहिरन्तर्भवफिरंग में फिरंगार्बुद निर्माण की अपेक्षा कुछ प्रसर तन्तूत्कर्ष ही होता हुआ देखा जाता है।
बालकों में सहजफिरंग से पीडित होने पर प्लीहाभिवृद्धि देखी जाती है। प्लीहा में दो ही प्रकार के विक्षत बालकों में होते हैं जिनमें प्रधान है फरक रोग और दूसरा फिरंग है।
(६) स्वरयन्त्र पर फिरंग का प्रभाव आभ्यन्तरफिरंग में मुख के अन्दर जैसे श्लेष्मल सिध्म बन जाते हैं वैसे ही स्वरयन्त्र की श्लेष्मल कला पर भी बन जाते हैं । तृतीय बहिरन्तर्भवावस्था में फिरंगा. बुंदाभ भरमार हो जाती है जिसके कारण चीरित या रूक्ष ( ragged ) व्रण बन जाते हैं। ज्यों ज्यों रोग की वृद्धि होती है व्रण के स्थान पर व्रणवस्तु बनती जाती है। इस व्रण वस्तु का जब संकोच होता है तब स्वरयन्त्र का निरोधोत्कर्ष (stenosis of the larynx ) हो जाता है और वहाँ की श्लेष्मलकला अंकुरीयित ( papillo. matous ) हो जाती है। व्रणशोथ गहराई तक चला जाता है जिसके कारण स्वरयन्त्र की कास्थियाँ भी नष्ट हो जाती हैं। इस स्थिति को परिकास्थिपाक (perichondritis) कहते हैं। यह परिकास्थिपाक न केवल फिरंग की ही घटना है अपि तु यक्ष्मा अथवा आन्त्रिक ज्वर के कारण होने वाले व्रणन में भी देखी जा सकती है।
(७)
फुफ्फुस पर फिरंग का प्रभाव फुफ्फुस पर फिरंग का प्रभाव सहज और अवाप्त दोनों प्रकार का देखा जा सकता है।
सहजफिरंगी शिशुओं के फुफ्फुसों में फिरंग का उपसर्ग मिल सकता है। बालक या तो मरा हुआ उत्पन्न होता है या उत्पन्न होते ही मर जाता है । मृत्यूत्तर परीक्षा करने पर स्थूल रूप से सम्पूर्ण फुफ्फुस या उसका एक भाग आधूसर पाण्डुर वर्ण का दिखाई देता है और वह पूर्णतः संघटित होने के कारण जल में डालते ही डूब जाता है। संघटन के कारण इसे श्वेत श्वसनक ( pneumonia alba ) नाम भी दिया जा सकता है। संघनित भाग का कटा हुआ धरातल शुष्क तथा मसृण
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