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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फिरङ्ग ६०६ फिरंगिक वाहिन्यग्रन्थियाँ (Syphilitie aneurysms ) __ अभी अभी हमने यह बतलाया है कि महाधमनी के मध्य चोल की प्रत्यास्थ अति के नष्ट-भ्रष्ट हो जाने के कारण वाहिन्यग्रन्थियाँ महाधमनी में उत्पन्न हो जाती हैं। प्रसंगानुरूप होने से इसी कारण अब हम इस विषय का आवश्यक विवेचन करते हैं। वाहिन्यग्रन्थि (सिराजग्रन्थि ) एक प्रकार का वाहिनी की प्राचीर का विस्फार है जिसका कारण वाहिनी के भीतर के रक्त का पीडन वाहिनीप्राचीर की पीडन सहने की सामर्थ्य से अधिक होना है। इस कारण से वाहिन्यग्रन्थि एक प्रकार वाहिनीविस्फार है। पीडन सहने की सामर्थ्य सदैव वाहिनी के मध्यमचोल में रहती है। जब इस चोल में किसी प्रकार का आघात होता है या किसी उपसर्ग के कारण वह दुर्बल हो जाता है या किसी अन्य सहज या उत्तरजात कारण से वह क्षतविक्षत हो जाता है तो वाहिन्य ग्रन्थियाँ या बाहिनीय विस्फार उत्पन्न हो जाता है। इस कारण यह महाधमनी से लेकर मस्तिष्क की चुद्रतम धमनियों में भी देखा जा सकता है। वाहिन्यग्रन्थियों के लिए प्राचीनों ने सिराजग्रन्थि नाम भी दिया है व्यायामजातैरबलस्य तैस्तैराक्षिप्य वायुस्तु सिराप्रतानम् । संकुच्य संपीड्य विशोष्य चापि ग्रन्थि करोत्युन्नतमाशु वृत्तम् ॥ ग्रन्थिः सिराजः स तु कृच्छ्रसाध्यो भवेद्यदि स्यात्सरुजश्चलश्च । स चारजश्चाप्यचलो महांश्च मर्मोत्थितश्चापि विवर्जनीयः ॥ ( सुश्रुत ) व्यायाम ऐसे जो आघातकारक हों या उपसर्गादि कारणों से उत्पन्न आघातों से सिराप्रतान सिराजाल या धमनी विशेष निर्बल हो गई है वहाँ रक्त को संचारित करने वाली उसी धमनी या सिरा में स्थित वायु (निपीड ) संकोचन, संपीडन या विशोषण के द्वारा उस धमनी में शीघ्र तथा गोलाकार और ऊँची उठी हुई एक ग्रन्थि बना देती है। यही सिराजग्रन्थि (aneurysm ) है यह सशूल होने पर तथा स्पन्दनमती होने पर कष्टसाध्य होती है पर यदि यह पीडा रहित, अचल, बड़ी और मर्मदेश में स्थित हुई तो असाध्य होती है । उपरोक्त श्लोकों की गूढ़ता जाननी आवश्यक है। नूतन ज्ञान से युक्त व्यक्ति उस गूढता को जान सकता है और पहचान सकता है कि ऋषियों ने अबल, व्यायाम, वायु, सिराप्रतान, संकोचन, पीडन, विशोषण, ग्रन्थि आदि शब्दों का प्रयोग व्यर्थ नहीं किया अपि तु सम्पूर्ण विकृतिविज्ञान को कुछ ही शब्दों में रखने का सफल यत्न किया है। महाधमनी की ग्रन्थियाँ महाधमनी एक मर्म देश है । इसमें स्थित ग्रन्थि आयुर्वेद की दृष्टि से असाध्य होती है। इसमें ग्रन्थि का मुख्य कारण फिरंग माना जाता है। कुछ विद्वानों का तो यहाँ तक विश्वास है कि महाधमनी की सम्पूर्ण सिराजग्रस्थियों का एक मात्र कारण फिरंग ही होती है पर ऐसा कहना बहुत बड़ी बात है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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