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विकृतिविज्ञान
हैं । इसके बाद श्लेष्मलकला में शोथ होते हैं साथ में प्रसेकी नासापाक के कारण नासप्रसेक (snuffles) हो जाता है । श्लेष्मलकलाओं में व्रणन होने लगता है, लम्बी अस्थियों में अस्थिशिरीय विज्ञत देखे जाते हैं । दन्ताकाच ( enamel of the teeth ) नष्ट हो जाता है, नेत्र में अन्तरालित स्वच्छापाक (interstitial keratitis ) हो जाता है जिसके कारण स्वच्छा ( cornea ) पारान्ध ( opaque ) हो जाती है तथा अन्तःकर्ण रोग आदि देखे जाते हैं ।
अस्थियों में फिरंगिक अस्थिशिरपाक ( syphilitic epiphysitis ) या अस्थि कास्थीयपाक ( osteochondritis ) हो जाता है जिसका कारण इन ऊतियों में फिरङ्गार्बुदिकीय ( gummatous ) ऊति का विकास है । यह विकास लम्बी अस्थियों के अस्थिशिरीय भाग में वहाँ होता है जहाँ अस्थीयन की रेखा होती है । यहाँ ऊतिमृत्यु होने के कारण अस्थिशिर अस्थि के दण्ड ( shaft ) से पृथक हो जाता है । चाहे उनमें आगे चलकर रोपण हो जावे परन्तु अस्थियाँ छोटी पड़ जाती हैं या रह जाती हैं । अस्थिगत मज्जा जिसका कार्य रक्तकण निर्माण का है उसका भी पर्याप्त नाश हो जाता है जिसके कारण रक्तनिर्माणकार्य में भी बहुत बाधा पड़ जाती है । अस्थियों के स्वयं के विकास में बाधा होने के कारण फक्क रोग सरीखे विक्षत इधर भी अस्थियों में देखने को मिलते हैं । ये विक्षत फक्क रोगी की आयु से भी पहले होते हैं । फिरंगिक करोटिका ( cranio tabes) के क्षेत्र भी देखे जाते हैं जब कि करोटि की अस्थियाँ कृश होती जाती हैं । कहीं-कहीं जहाँ अस्थि के ऊपर प्रगुणात्मक पर्यस्थपाक होता है करोटि का उत्थन ( bossing ) हो सकता है शिशु का दन्तोद्भव विलम्ब से होता है और जब दाँत निकलते हैं तो वे विकारपूर्ण होते हैं और जब उनकी पुनरुत्पत्ति होती है तो ऊर्ध्व हनु के मध्य के राजदन्तों में चन्द्राकार खात होता है इन दाँतों को हचिंसनीय दन्त ( Hutchinson's teeth ) नाम दिया जाता है ।
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कृत् में फिरंगार्बुदिका ( gammata ) अन्य अंगों की भाँति बन सकती हैं परन्तु मुख्यविक्षत परिकोशीय यकृद्दाल्युस्कर्ष ( pericellular cirrhosis ) का होता है । यकृत् में सुकुन्तलाणुओं की बहुत बड़ी संख्या रहती है जो यकृत् ऊति का डट कर विनाश करती रहती है जिसके कारण एक वास्तविक ( true ) औपसर्गिक यकृत्पाक हो जाया करता है । मृतकोशा आत्मपचन (autolysis ) द्वारा स्वतः लुप्त हो जाते हैं और उनका स्थान सूक्ष्म तान्तवऊति ले लेती है जिसके कारण एक ऐसा जाल सा बन जाता है जिसमें दो या तीन कोशासमूह पहचान में आते हैं atara और प्रre कोशाओं की औसत दर्जे की भरमार देखी जाती है तथा इतस्ततः फिरंगार्बुदीय नाभियाँ पाई जाती हैं जो श्यामाकसम फिरंगार्बुदिकाओं का निर्माण कर देती हैं । जितने कोशाओं का विनाश हो जाता है उसी अनुपात में यकृत् की क्रियाशक्ति भी नष्ट हो जाती है । पाचक पित्त का उदासर्ग भी रुक जाने से कामला उत्पन्न हो जाता है । यही कारण है कि नवजात शिशु में सहज फिरंग रोग में कामला मिलता है । यकृत् प्रवृद्ध हो जाता है और उसकी गाढता ( consistency ) रबर
। लस
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