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विकृतिविज्ञान महत्वपूण प्रमाण इस समय अप्राप्य सा है। कुछ भी हो आयुर्वेदज्ञों का निम्न वाक्य सदैव फिरंग की दृष्टि से तो अवश्य ही सार्थक है:
शुकं हि दुष्टं साप यं सदारं वाधते नरम् । अर्थात् पुरुष का वीर्य यदि दुष्ट है तो वह उसकी स्त्री तथा अपत्य दोनों को बाधा पहुँचाता है। फिरंगी पुरुष का शुक्र दुष्ट हुआ तो पहले स्त्री को फिरंग से पीडित करता है फिर माता के अपरा द्वारा रक्त के साथ गर्भ में पहुँचता है और अपत्य को विकारयुक्त वा फिरंगी बना देता है।
फिरंग से पीडिता माता क्या प्रत्येक अवस्था में गर्भ को फिरंग से पीडित करने में समर्थ होती है ? यह एक महत्व का प्रश्न है जिसका समाधान करने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। इस प्रश्न को समझने के लिए हमें माता की फिरंग की ओर गर्भ की स्थिति को समझना पड़ेगा। ये निम्न प्रकार की हो सकती हैं:(१) जब माता को फिरंग का रोग लगा हुआ है और उसकी प्रथमावस्था चालू
है उस समय गर्भाधान हुआ है। (२) जब माता को फिरंग की द्वितीयावस्था चालू है और तब गर्भाधान हुआ है। (३) जब माता को फिरंग की तृतीयावस्था चालू है और तब गर्भाधान हुआ है। (४) जब माता को गर्भाधान होने के उपरान्त फिरंग का उपसर्ग गर्भाधान के
तुरत बाद हुआ है। (५) जब माता को गर्भाधान हुए कई मास व्यतीत होने के उपरान्त गर्भाधान
हुआ है। (६) जब माता का गर्भकाल पूर्ण हो चुका है तथा प्रसूति के कुछ पूर्व
फिरंगोपसर्ग लगा है। उपरोक्त स्थितियों में से प्रथम तीन स्थिति वे हैं जब गर्भाशय के पूर्व फिरंगोपसर्ग हुआ है । इन तीनों स्थितियों में गर्भ निस्सन्देह सहजफिरंग ग्रहण कर सकता है । एक बार एक स्त्री जो ३७ वर्ष पूर्व फिरंग से पीडित हुई थी सहजफिरंगी शिशु को जन्म देने में समर्थ देखी गई थी। चौथी स्थिति में भी सहजफिरंग होने की भरपूर गुञ्जायश रहती है। पाँचवीं स्थिति में गुंजायश कम होती है तथा छठी स्थिति में गुंजायश बिल्कुल नहीं रहती है । हाँ प्रसव के समय शिशु को उपसर्ग लग सकता है जो फिर अवाप्तफिरंग का रूप धारण करता है न कि सहजफिरंग का। एक सातवीं स्थिति यह भी हो सकती है कि प्रसवकाल के पश्चात् स्त्री को फिरंग रोग लगा हो। उस स्थिति के कारण भी अवाप्त फिरंग होने की ही सम्भावना हो सकती है और वह भी बहुत कम ।
एक और प्रश्न यह है कि फिरंगोपसर्ग के कितने दिन पश्चात् तक सहजफिरंगी बालक का जन्म करने में स्त्री समर्थ रहती है। इसके लिए ३७ वर्ष वाला उदाहरण दिया जा चुका है। मोटा अन्दाज इस प्रकार का है कि यदि स्त्री नई-नई ही फिरंग से पीडित हुई है तो गर्भ का पात हो जाना स्वाभाविक है। गर्भविच्युति के सम्बन्ध में सुश्रुत का एक सूत्र बहुत महत्त्व का है:
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