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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यक्ष्मा ५४३ यदिमका-निर्माण तथा विकास किसी भी मार्ग से सही, यक्ष्मादण्डाणु जब फुफ्फुस में पहुँच जाता है तब यहाँ रहकर जो घटनाएं घटती हैं वे सदैव एक सी होती हैं। अर्थात् लसधारा से होकर आने वाला दण्डाणु कुछ अन्य क्रिया करता होगा और रक्तधारा से आनेवाला कोई अन्य ऐसा नहीं होता। यचमादण्डाणु चाहे तो किसी केशाल में हो या किसी वायु मार्ग में, उसे भक्षिकोशा श्लैष्मिक या अन्तश्छदीय स्तर में होकर ले जाया करते हैं और झट से वह अपना सम्बन्ध लसावकाशों से या लसाभ अति से बना लेता है। यदि यह यहीं पकड़ा गया तो यचमप्रतिक्रिया प्रारम्भ होने लगेगी। यह प्रतिक्रिया प्रथमोपसर्ग में विशुद्ध होगी जिसमें शनैः शनैः यमदण्डाणुओं का प्रगुणन होगा और नवीन ऊति का निर्माण होगा। पर यदि उपसर्ग उत्तरजात होगा तो अनवधानता ( anaphylaxis ) के परिणामस्वरूप वहाँ व्रणशोथात्मक उत्स्यन्द ( inflammatory exudation ) होने लगेगा। यह प्रतिक्रिया २ प्रकार की होती हैं : १-उत्पादी प्रतिक्रिया ( productive reaction ) २-उत्स्तन्दी प्रतिक्रिया ( exudative reaction ) उत्पादी प्रतिक्रिया-इस प्रतिक्रिया में जो प्रतीकारिता रहित प्राणियों में उत्पन्न हुआ करती है एक ही प्रकार के कोशा की वृद्धि होती है जिसे अधिच्छदाभकोशा ( epithelioid cell ) कहते हैं। इन्हीं कोशाओं द्वारा विकासोन्मुखी यचिमकाओं * का प्रकाय ( bulk ) बनता है। इसके पश्चात् महाकोशा जिन्हें डाक्टर घाणेकर ने राक्षसकोशा (giant cells) कह कर पुकारा है बनने लगते हैं। ये बहुत बड़े होते हैं इनमें अनेक न्यष्टियाँ पाई जाती हैं जो कोशा में बाहर की ओर परिणाह में या एक ध्रुव ( pole ) के पास अथवा सम्पूर्ण प्ररस में विकीर्ण मिलती हैं। ये महाकोशा अत्यधिक भक्षण शक्ति रखते हैं तथा इनके गर्भ में यमदण्डाणु पड़े हुए देखे जा सकते हैं। ___ एक सप्ताह समाप्त होते-होते उस क्षेत्र में एक नवीन कोशा प्रकट हो जाता है जिसे हम लसीकोशा (lymphocyte) कहते हैं । यह कोशा स्थानिक लसाम अति द्वारा प्रदान किया जाता है न कि रक्त द्वारा । लसीकोशाओं की वृद्धि से यच्मा में क्या कार्य सम्पादित होता है यह अभीतक निश्चित नहीं किया जा सकता परन्तु यह अवश्य अनुमान लगाया जा सकता है कि इनके द्वारा अवश्य ही कोई महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित होता होगा। प्रगुणित वा नवागत कोशाओं से निर्मित यह तुद्र कोशापुञ्ज यक्ष्मिका कहलाता है यह वाहिनी रहित होता है क्योंकि यहाँ कोई नई केशाल प्रवेश नहीं करती। केशालों वा शिराओं का अभाव बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। दूसरा सप्ताह होते-होते इन यमिकाओं में किलाटीयन ( caseation) चल पड़ता है। इसमें होता यह है कि यचिमका के केन्द्रभाग के कोशाओं की बहीरेखा ( outline ) For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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