________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४००
विकृतिविज्ञान प्रकार की कल्पना की सत्यता पर विष्टम्भ यह गुण कफज्वर में लिख सकते हैं पर उसमें अधिक सार नहीं है क्योंकि वायु का रूक्ष गुण निस्सन्देह मल की शुष्कता और स्तम्भता का कारण बनता है पर कफ तो स्निग्धगुण भूयिष्ठ है इसमें मल का पूर्णतः स्तम्भन हो ही नहीं सकता। मल में कफ के द्वारा प्रदत्त क्लेदक अंश या जलीयांश ही उसे सरलतापूर्वक निःसृत करने की क्षमता प्रदान करता है। अन्य भी किसी आचार्य या टीकाकार ने मलस्तब्धता को कफज्वर में मानने का प्रोत्साहन नहीं दिया। गंगाधर ने शरीर की ऐच्छिक पेशियों की श्लथता को देखकर ही मल को खदेड़ने वाली पेशियों के स्तम्भ की कल्पना कर ली है। शरीर का सम्पूर्ण बाह्य व्यापार कफज्वर में मम्द पड़ जाता है पर आन्तरिक व्यापार चलता है निरन्तर चलता है कोई भी महास्रोतीय ग्रन्थि ऐसी नहीं बचती जो कुछ स्राव न करती हो। महास्रोत में स्त्रावों का उत्कर्ष शिथिल पड़ी हुई आँतों पर भी बल डालता है कि वे मल को बाहर खदेड़ दें। यहाँ तक तो माना जा सकता है कि कफज्वर के आरम्भिक कुछ समय तक आँतों की शिथिलता मलस्तम्भकारिणी हो। यह सभी जानते हैं कि शीतल पदार्थों के प्रयोग से कफ वृद्धि होती है, यही शीतलता वायु को भी बढ़ावा दिया करती है । अतः कुछ वृद्धि के साथ-साथ या वायु का भी अनुबन्ध होगा तो कोई कारण नहीं कि मल में शुष्कता आ जावे। मलक्रिया में स्तब्धता तब भी नहीं आ सकती क्योंकि वायु स्वयं सञ्चरण शील और कफ को भी गति देने वाला प्रसिद्ध है। अतः हमारे विचार से स्तम्भ से हमें मधुकोशकार द्वारा व्यक्त अगस्तब्धता को ही मान्यता देनी चाहिए न कि स्तम्भःपुरीषस्य को।
अब हम कफज्वर के उन तीन प्रमुख लक्षणों का वर्णन करते हैं जिनके द्वारा कोई साधारण भारतीय यह कह देता है कि रोगी कफज्वर से पीडित है। ये तीन लक्षण हैं कास, श्वास और प्रतिश्याय | कफज्वर के आरम्भ होते ही जुकाम बनता है खाँसी आती है और उसके बाद सांस फूल जाती है।
कास और प्रतिश्याय ये दोनों एक साथ आते हैं। श्वास का वेग कभी-कभी ही आता है इसी कारण श्वास के लक्षण को सुश्रुत, डल्हण, हारीत, उग्रादित्य अथवा अञ्जननिदानकार ने लिखा ही नहीं है। वास्तव में तो यदि कास और प्रतिश्याय से युक्त कफज्वर की योग्य चिकित्सा की जावे तो श्वास बढ़ती ही नहीं इसी कारण इन आचार्यों को वैसे रुग्ण देखने का अवसर नहीं मिला पर जिन आचार्यों ने सर्वाङ्गीण सत्य का दर्शन किया है उन्होंने इस श्वास के महत्त्व को भी समझा है। आज के युग में रोगी को जहाँ सर्दी ( cold ) लगी कि खाँसी ( bronchitis ) बनी और कुछ ही काल में श्वास ( Pneumonia) बन गया यह प्रतिदिन चिकित्सक के सामने से बीतता है। यह सब कफज्वर का ही व्यक्त स्वरूप है जिसे लोगों ने भ्रमवश समझने में भूल की है। __ कासः सश्लेष्मा गंगाधर कविराज ने स्पष्ट किया है कि कास कफज्वर में कफ से युक्त पाई जाती है खाँसी में कफ बहुत झड़ता है। यह कफ गादा (सान्द्र कफ) होता है
For Private and Personal Use Only