________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३२६
विकृतिविज्ञान १२ दिन में और वाताधिक्य ७ दिन में वह शान्त होता या मार देता है । शान्त होने के लिए मलपाक होता है और मारने के लिए धातुपाक होता है। इन पाकों के लिए
प्रलापभ्रमश्वासैः सन्ततज्वरे धातुपाको शेयोऽन्यथा तु मलपाक इति ॥ से समझ लेना चाहिए।
सन्ततज्वर की सुदुःसहता जिस प्रकार बलवान् राजा के सामने हृदय में प्रतिपक्षीभाव लेनेवाला दूसरा राजा भी ठीक प्रकार का आचरण करता है उसी प्रकार काल की विभिन्नता, दृश्यों की विविधता, प्रकृति की पृथकता आदि सभी सन्ततज्वरकारी दोषों के समान आचरण करने लगते हैं और सम्पूर्ण शारीरिक वातावरण सन्ततज्वर के पूर्णतया अनुकूल वन जाता है इसी कारण इसे सुदुःसह कहा जाता है।
दोषों का गमन सन्ततज्वर में वातादिदोष त्रय रसवह स्रोतों द्वारा सर्वप्रथम रसधातु को अनुगमन करते हैं और आगे इतने शीघ्र अन्य धातुओं में पहुँचते हैं कि शास्त्रकारों ने सप्त धातुओं में उनका युगपत् ( ऐककालिक ) गमन स्वीकार कर लिया है । सात धातु ही नहीं वे मल और मूत्र में भी प्राप्त हो जाते हैं। यह सब नियमात् (नियमपूर्वक ) होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि वात, पित्त, और कफ जो सन्ततज्वरोत्पत्ति के मुख्य घटक हैं रस, रक्त, मांस, मेदस् , अस्थि, मजा और शुक्र नामक सातो दृप्यों में एक साथ ही पहुँचते हैं और मल तथा मूत्र में भी उसी समय पहुँचते हैं । इस प्रकार मल, मूत्र, सात धातु और तीन दोष कुल बारह घटकों के द्वारा सन्तत ज्वर की रचना होती है। यही द्वादश उसके आश्रय कहलाते हैं फिर भला उसको दुःसह न कहा जावे तो किसे कहा जा सकता है ।
प्रशमन या हनन का रहस्य सन्तत ज्वर ७, १० या १२ दिन में यों तो शान्त होता है या यों मार देता है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका थोड़ा हल यहाँ निकाला जा चुका है कि जब दोष मल पाकी होंगे तो रोग दूर हो जावेगा अथवा जब धातुपाकी होंगे तो रोगी संसार से दूर हो जावेगा । इसी को अधिक स्पष्ट करने के लिए लिखा है--
स शुद्धया वाप्यशुद्धया वा रसादीनामशेषतः । सप्ताहादिपु कालेषु प्रशमं याति हन्ति बा। कालदूष्य प्रकृतितुल्य सन्ततज्वर दोष दूष्यों के निःशेषेण संशोधन से पैत्तिक ड्रोपाधिक्य हो तो १० दिन में शान्त हो जाता है और निःशेष शोधनाभाव हो तो 5. ही दिन में मार देता है। वही दोष दृष्यों के पूर्णतः शुद्ध होने पर कफानुबन्ध युक्त १२ दिन में शान्त हो जाता है या पूर्ण शोधनाभाव होने से १२ दिन में मार देता है अथवा वातिक भाव की प्रधानता होने पर वही सन्तत दोष दूष्यों के संशोधन होने से ७ दिन में ठीक हो जाता है और निःशेषेण संशोधनाभाव होने पर ७ दिन में मार डालता है। रसादि सप्त दृष्यों को संशुद्ध करने के लिए योग्य उपचार न हो सका
For Private and Personal Use Only