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ज्वर
३२१ ग्रीष्म और प्रावृट् और वर्षा में पित्तज्वर अपने विशिष्ट कारणों में कुपित होता है और वैकृत पित्तज्वर बनता है। कफज्वर वसन्त ऋतु में प्राकृत पर जब वह अन्य पाँचों ऋतुओं ग्रीष्म प्रावृट् वर्षा शरद् और हेमन्त ऋतु में विशेष कफकारक आहार विहारादि के कारण उत्पन्न होता है तो वैकृत । एयरकंडीशण्ड रेलवे के डब्बे में मदरास से दिल्ली तक ३ दिन यात्रा करने वाला प्राणी जब दिल्ली में गर्मी के मौसम में उतरे और उसे कफज्वर हो जावे यह ज्वर ऋतु विपरीत या प्राकृतिक नियमों के विपरीत काल में उत्पन्न होने से वैकृत ज्वर ही कहलावेगा। प्रावृट में वातज्वर प्राकृत ज्वर है पर वर्षा, शरद, हेमन्त, वसन्त और ग्रीष्म में विविध कारणों से उत्पन्न होने के कारण वैकृत वात ज्वर बनेगा। ____ 'प्राकृतः सुख साध्यस्तु' के कारण प्राकृत और वैकृत के विचार में बहुत बड़ी बाधा पड़ी हुई है। प्राकृत सुखसाध्य होता है अतः शरत्कालीन पित्तज्वर और वसन्त कालीन कफज्वर सुख साध्य होने से प्राकृत हैं और वर्षा या प्रावृट् कालीन वातज्वर कष्टसाध्य होने से वैकृत ज्वर है ऐसा एक भ्रम चल पड़ा है। परन्तु वैसा भ्रम रहना नहीं चाहिए । वातज्वर तो प्रावृट् कालीन वात के प्रकोप के कारण होता है वास्तव में अधिक कष्टपूर्वक सिद्ध होने वाला या असाध्य न होकर सिद्ध हो ही जाता है और प्राकृत वैकृत ज्वर का ज्ञान रोग की साध्यता और कष्टसाध्यता पर निर्भर नहीं है । वह तो कालप्रकृतिमुद्दिश्य निर्दिष्टःप्राकृतो ज्वरः वाली परिभाषा पर निर्भर करता है। प्रायेणानिलजो दुःखः कि अनिलज (वातज) व्याधि प्रायः करके कष्टसाध्य होती है इतना इङ्गित कर देने के ही कारण पहले प्राकृतः सुखसाध्यस्तु का व्यवहार किया गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रावृट् कालीन वातज ज्वर कष्टसाध्य होने पर भी प्राकृत ज्वरान्तर्गत ही चरक मानता है। (७) साध्यासाध्यता की दृष्टि से भी ज्वर के २ भेद किये जाते हैं :अ-साध्य ज्वर।
__ आ-असाध्य ज्वर ।। साध्यासाध्यता ( Prognosis ) ज्वराक्रान्त के जीवन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व पूर्ण है। एक अत्यन्त हट्टा कट्टा व्यक्ति जिसकी अवस्था ३४ वर्ष की थी केवल २४ घण्टे के ज्वर में इस असार संसार को अपनी स्त्री और बच्चों को सदा के लिए विलखता छोड़ कर चला गया । ज्वर साध्य है या असाध्य इसका पूर्ण विचार करना परमावश्यक है । यह शरीर में हुई विकृति की माप का एक स्थूल अनुमान होता है। साध्य ज्वर के सम्बन्ध में लिखा है
बलवत्स्वल्पदोषेषु ज्वरः साध्योऽनुपद्रवः । बलवान् तथा अल्प दोष वाले प्राणियों में उपद्रव रहित ज्वर साध्य होता है। रोगी में बलपर्याप्त हो ज्वर के कारणभूत दोषों की अशांश कल्पना करने पर वे थोड़े हों और उपद्रव' कोई न हो तो ऐसा ज्वर सुखसाध्य मान लेना चाहिए। अगर शरद्
१. श्वासोमू रुचिच्छर्दितृष्णातीसारविड्ग्रहाः। हिक्काकासाङ्गभेदाश्च ज्वरस्योपद्रवा दश ।।
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