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विकृतिविज्ञान दृढतापूर्वक तथा निबिड उति (compact tissue ) द्वारा पूर्णतः जुट जाते (सन्धानित हो जाते) हैं तब किणक का पुनर्जूषण प्रारम्भ होता है । यह कार्य प्रायशः अस्थि भग्न होने के समय से तीसरे महीने में चालू होता है और इसके करने वाले होते हैं अस्थिदलक। इस क्रिया का नाम है अस्थिदलकीय गर्तिकीय प्रचूषण ( osteoclastic lacunar absorption)। यह सदैव स्मरणीय रहना चाहिए कि अस्थिभग्न में अस्थि के सिरे जितने ठीक और समासम बैठा दिये जावेंगे तथा उनकी जितनी ही अधिक शारीरिक स्थिति लाई जावेगी उतनी ही पूर्णता से किणकीय विलोप हो सकेगा । इसी लिए शल्यशास्त्रवेत्ताओं को अस्थिभग्नों को बैठाने की क्रिया में परम दक्ष होना चाहिए।
आहार में खनिज तत्वों की कमी होना तथा जीवतिक्तियों का अभाव होना अस्थिभग्न के ठीक करने में विलम्ब का कारण सदैव बना करता है। जीवतिक्ति ग वा घ की कमी से तो अस्थियों के भग्न का ठीक होना रुक जाता है। निम्नाङ्कित अन्य कारणों से भी किणक निर्माण या अस्थिसन्धान क्रिया में बाधा आ उपस्थित होती है :
१. वह कारण जो अस्थिखण्डों को अत्यधिक गतिमान् बनाता है। २. अस्थिखण्डों के मध्य में पेशी या अन्य बाह्य अपद्रव्य का उपस्थित रहना। ३. कोई शारीरिक रोग जो ऊतियों की पुनर्जननशक्ति को क्षीण करता हो
४. वृद्धावस्था ' ५. उपसर्ग की उपस्थिति जिसके कारण भास्वीयेद ( phosphatase ) नामक विकर अपना कार्य ठीक प्रकार से नहीं कर सकता तथा दूसरी हानि इसके कारण यह होती है कि भग्नस्थल पर सतत एवं अनावश्यक अधिरक्तता आ उपस्थित होती है जो अस्थिरुहों की क्रिया को बढ़ावा न देकर अस्थिदलकों की सहायता करती है जिसके कारण जैसा अन्यत्र होता है यहाँ भी तन्तुरुहीय कणनऊति का निर्माण होने लगता है जो अस्थि का प्रचूषण करने लगती है।
यदि अस्थिखण्डों में से किसी को जाने वाली अस्थिपोपणी वाहिनी का सम्बन्ध विच्छेद हो गया या अस्थिपोषणी वाहिनी ( nutrient artery ) को ही आघात लग गया तो अस्थि को या उसके एक खण्ड को रक्त का पहुँचना दूभर हो जाता है जिसके कारण उसमें रोपण के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते और उसकी अपुष्टि हो जाती है।
रोपण में प्रतिरोपण का महत्त्व ___ यदि किसी अंग में अति विस्तृत ऊतिनाश हुआ हो तो यह बहुत कठिन होता है कि उस अंग का रोपण हो सके यदि किसी कारण से उस अंग का जीर्णोद्धार होना आरम्भ भी हो तो वहाँ अत्यधिक व्रणवस्तु बन जावेगी और अंग कार्य की दृष्टि से पूर्णतः बेकार हो जावेगा। ऐसी दशा में यह आवश्यक है कि उस विनष्ट ऊति के स्थान पर सजीव एवं स्वस्थ ऊति का प्रतिरोपण ( transplantation) कर दिया जावे।
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