SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५१ विह्रास चिरकाल से शोथग्रस्त लसग्रन्थियों, जिह्वा तथा कभी कभी हृदय में भी यह स्थानिक ( local ) परिवर्तन करती हुई देखी जाती है। अण्वीक्ष से देखने पर मण्डाभ पदार्थ मुख्यतः योजी ऊतियों को प्रभावित करता है तथा गौणरूपेण अधिच्छद को। यह सर्वप्रथम उपान्तश्छदीय संयोजी ऊतियों ( subendothelial connective tissues ) या धमनिकाओं के मध्यस्तरों या केशालों की प्राचीरों में पाया जाता है। अन्तश्छद को यह पदार्थ छोड़ देता है। परिणाम यह होता है कि वाहिनीमुख अत्यधिक सङ्कीर्ण हो जाता है परन्तु उसकी प्राचीर पर एक सा प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि कहीं कहीं ताकार वर्धन हो जाते हैं जिससे रक्तप्रवाह कम हो जाता है परन्तु एक ही अङ्ग की बहुत सी वाहिनियाँ इस व्याधि से पूर्णतः बच भी जाती हैं तथा इस परिवर्तन का वंटन ( distribution) प्रायः असम होता है। ___स्थूलदृष्टया, इस विह्रास से प्रभावित होने वाले सब अंग अपने अन्दर एक बराबर बढ़ते हैं। उनमें से प्रत्येक के किनारे गोल, भार बढ़ा हुआ तथा आपेक्षिक घनत्व भी बढ़ा हुआ देखा जाता है । उनका बाह्य तल मृदु, प्रावर ( capsule ) आतत ( tense ) तथा तत ( stretched) पाया जाता है। काट कर देखने से उनका रूप समाङ्ग, चमकदार, पारभासी तथा सिक्थरोपित दिखाई देता है। इस विहास के कारण वाहिनियों का मुख सङ्कीर्ण हो जाने से रक्त का प्रवाह कम होता है अतः वे रक्ताभाव के कारण रङ्ग में पाण्डुर देखी जाती हैं। प्रभावित अंग में मण्डाभ पदार्थ के कण स्थान स्थान पर उबले हुए साबूदाने के स्वरूप के लांछन या सिध्म (spots or patches) पाये जाते हैं। ____ आयोडीन (जम्बुकी ) के साथ अभिरञ्जन करने से प्रभावित धातु के मण्डाभ पदार्थ का असित महार्घ बभ्रु ( dark mahogany-brown ) वर्ण आता है तथा शेष अति पीत वर्ण की हो जाती है। अण्वीक्ष का प्रयोग करने के पूर्व अभिरंजन के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन प्रोदलनीललोहित ( methyl violet ) के १ प्रतिशत जलीय विलयन का प्रयोग करना है । २० मिनट रंजन करके १ प्रतिशत शुक्तिक अम्ल चढ़ाने से भण्डाभ भाग दीप्त धूम्रली ( bright magenta) और स्वस्थ ऊतियों का नीला हो जाता है । अब नीचे अङ्गों पर इस अपजनन के क्या क्या परिणाम होते हैं उनका विवरण किया जावेगाः प्लीहा का मण्डाभ विह्रास प्लीहा में मण्डाभ विहास २ प्रकार का पाया जाता है। एक को नाभ्य प्रकार कहते हैं। इसमें प्लीहा उबले हुए साबूदाने के समान हो जाती है । यहाँ रोग प्लीहाणुओं (मालपीषियन पिण्डों) में पहले प्रारम्भ होता है। दूसरे को प्रसृत प्रकार (diffuse form) कहते हैं । इसमें प्लीहाणुओं के अतिरिक्त समस्त प्लैहिक गोद ( splenic pulp as a whole ) का विह्रास देखा जाता है। पहला प्रकार अधिक मिलता है। वैसे दोनों साथ साथ भी रह सकते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy