SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव २२१ में असंकुचित भाग (shrunken parts) तथा कोष्ठिकाएँ (cysts) भी देखी जाती हैं। अण्वीक्ष चित्र व्रणशोथ और विनाश का मिश्रण होता है। वाहिनियाँ विस्फारित हो जाती हैं जिनके चारों ओर लसीकोशा और बहुन्यष्टिसितकोशा विभिन्न अनुपातों में घिरे रहते हैं वातनाडीकोशा और वातनाडी तन्तुओं का बहुत विनाश मिलता है। बहुत सा अपद्रव्य एकत्र हो जाता है जिसमें वातनाडीतन्तुओं के विमजिकंचुक के ध्वंसावशेष मेद से भरे अनेक स्वच्छक कोशा दिखलाई देते हैं। ये अणुश्लेषकोशा ही बदले हुए रूप में प्रायः होते हैं। बहुत समय पश्चात् वहाँ नाडीश्लेषकोशा आकर वणवस्तु का निर्माण करते हैं। __इस रोग के जो लक्षण दीख पड़ते हैं वे विक्षत के प्रकार पर उतने निर्भर नहीं रहते जितने कि विक्षति की सुषुम्ना में स्थिति पर निर्भर रहते हैं। इस रोग का आक्रमण सहसा होता है और बहुत तीव्र स्वरूप का भी होता है रोगी संन्यास की तरह निर्बल होकर भूमि पर गिर पड़ता है। इसका कारण किसी बड़ी बाहिनी में अन्तःशल्य या घनास्रोत्कर्ष का होना हो सकता है। इस रोग में कटिभाग विशेष करके प्रभावित होता है। इसमें अधोचेष्ट चेतैक प्रकार की सक्थियों का श्लथधात होता है साथ में पेशियों का अपोषक्षय और गम्भीर प्रतिक्षेपों ( deep reflexes ) का लोप हो जाता है । पादतलीय प्रतिक्षेप (planter reflex ) भी लुप्त हो जाती है तथा बस्ति तथा गुदप्रदेशस्थ संकोचकों ( sphincters) का भी घात हो जाता है। संज्ञा विक्षोभ ( sensory disturbances ) भी मिल सकता है जिनमें विक्षतस्थलों पर संज्ञातीव्रता (hyperaesthesia) शूल तथा विक्षत से नीचे संज्ञाहीनता (anaesthesia) हो जाती है। ग्रैविक प्रदेश में विक्षत होने से चारों अवयवों ( limbs ) का घात हो सकता है । बाहुओं में जो घात होता है वह श्लथ ( flaccid) होता है क्योंकि प्रैविक भागस्थ चेष्टावहकोशा नष्ट हो जाते हैं । पादों में पहले श्लथघात होता है जो बाद में साक्षेप ( spastic) हो जाता है। जिसके कारण गम्भीर प्रतिक्षेपों का अतिभाव ( exaggeration ) हो जाता है। इसका कारण यह है कि यहाँ हम ऊर्ध्व चेष्ट चेतक प्रकार के विक्षत की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि मुकुलतन्त्रिका (direct pyramidal tract) के तन्तुओं के कार्य में इस ग्रैविक भाग में बाधा पड़ती है । ग्रैविक भाग के स्वतन्त्रनाडीमण्डल में भी घात होने पर तारालाघव ( miosis ) तथा अक्षिगोल का अन्तराकर्षण (enophthalmia) ये दो लक्षण देखे जा सकते हैं। 31 Tetek ( Rabies ) अब हम आलर्क या जलसंत्रास ( hydrophobia) नामक रोग का इसलिए वर्णन करते हैं क्योंकि वह भी एक व्रणशोथात्मक व्याधि है। __ आलर्क या जलसंत्रास मांसभुज चतुष्पदों की व्याधि है जो इनके दंशन से मनुष्य को प्राप्त होती है। कौन कौन जीव पागल होकर किस प्रकार का हो जाता है उसका वर्णन करते हुए सुश्रुत लिखता है For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy