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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० विकृतिविज्ञान एक विमेदवर्ण ( lipochrome ) पीतवर्ण का पाया जाता है, यह पीत रंगा विविध विहासात्मक अवस्थाओं में बहुत बढ़ता हुआ देखा जाता है । केन्द्रिय वातनाडी संस्थान की अन्तरालित ऊति - मस्तिष्क और सुषुम्ना की रचना में प्रयुक्त द्रव्य, चेतैकों तथा अन्तरालित ऊतियों इन २ वर्गों में विभक्त किए जा सकते हैं । पहले विद्वान् वातनाडियों और उनके प्रवर्धो के ज्ञान की खोज पर अधिक ध्यान देते रहे हैं परन्तु स्पेनदेश के विद्वानों ने अन्तरालित ऊति सम्बन्धी प्रचुर अनुसन्धान करके यह प्रसिद्ध कर दिया है कि यह ऊति मस्तिष्क की आधारक या स्थान पूरक ऊतिमात्र नहीं है अपि तु वातनाडीसंस्थान की अर्थव्यवस्था ( economy ) की दृष्टि से अतीव महत्त्व का पदार्थ है । अभी तक हम यही समझते थे कि मस्तिष्क में चेतैकों ( नाडीकन्दाणुओं ) तथा चेताधारी ( neuroglia ) के अतिरिक्त कुछ होता ही नहीं क्योंकि मस्तिष्क के छेदों का अभिरंजन अधिकतर शोणितजारलि ( hematoxylin ) उथा उषसि ( eosin ) के द्वारा होता आया है । इन अभिरंजित छेदों में अन्तरालित ऊतिकोशाओं तथा छोटे छोटे चेताकोशाओं का अन्तर करना बहुत कठिन पड़ता है। अधिक ध्यान से देखने पर यह स्पष्ट अवश्य हो जाता है कि वातनाडी या चेता के कोशाओं में जहाँ निन्यष्टि ( nucleolus) पाई जाती है वहाँ चेताधारी या अन्तरालित ऊति कोशाओं में निन्यष्टि नहीं होती । परन्तु अनेक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रवर्ध अरंजित रह जाते हैं । मलोरी के भास्वचण्डिक अम्ल शोणितजारलि ( phosphotungstic acid hematoxylin ) अभिरंजन से वे प्रवर्ध जो ताराकोशाओं ( astrocytes ) के होते हैं वे भी अभिरंजित हो जाते हैं फिर भी ऐसे अनेक कोशा और दीखते हैं जिनमें कोई प्रवर्ध नहीं होता और जो एक नग्न न्यष्टि के रूप में ही प्रगट होते हैं इन्हें कजाल ने 'तृतीय द्रव्य' नाम दिया है । उसने प्रथम द्रव्य को चेतैक या नाडीकन्दाणु और द्वितीयद्रव्य को चेताधारी या लूताणुक (neuroglia ) नाम दिया है । स्पैनिश कजाल के सुयोग्य शिष्य डैलरायो होर्टेगा ने यह सिद्ध किया है कि नग्नन्यष्टि कोशाओं में भी प्रवर्ध होते हैं और ये कोशा दो पूर्णतः भिन्न वर्गों में विभक्त होते हैं । इनमें एक वर्ग के कोशाओं को उसने अल्पचेतालोमश्लेष ( oligodendroglia ) नाम दिया है क्योंकि इन कोशाओं के चेतालोम ( dendrites ) बहुत थोड़ी संख्या में होते हैं । दूसरे वर्ग का नाम उसने अणुश्लेष ( microglia ) रखा है क्योंकि वे बहुत सूक्ष्मकाय होते हैं । इन सबके कारण आज व्यवहार में मस्तिष्क की अन्तरालित ऊति में ३ प्रकार के कोशा बतलाये जाते हैं : १ – चेताधारी या ताराश्लेष ( neuroglia or astroglia ) - २—– अल्पचेतालोमश्लेष ( oligodendroglia ) तथा ३ – अणुश्लेष ( microglia ) ऐसा ज्ञात होता है कि ताराश्लेष और अल्पचेतालोमश्लेष दोनों की उत्पत्ति बहिःस्तर ( ectoderm ) से और अणुश्लेष्म की मध्यस्तर ( mesoderm ) से होने For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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