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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव
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पहुँच जाता है वहाँ पर भी विद्रधि बन जाती है । कभी कभी उपसर्ग गर्भाशयग्रीवा ( cervix ) तक पहुँच जाता है । बालिकाएँ हों या युवतियाँ दोनों में तीव्रावस्था तब तक अल्पकालीन होती है जब तक कोई और उपसर्ग न वहाँ पहुँचाया जावे। ऐसा होने पर उपसर्ग जीर्णावस्था को प्राप्त हो जाता है । इस अवस्था में उपसर्ग का क्षेत्र गर्भाशयग्रीवा के समीप पहुँच जाता है तथा बाह्य प्रजननाङ्गों के समीप से हट जाता है साथ में जीर्ण मूत्रनालपाक चलता रह सकता है परन्तु वह पुरुषों की तरह स्त्रियों में मूत्रनाल संकोच नहीं करता ।
बालिकाओं तथा युवतियों में उष्णवातीय गर्भाशय ग्रीवापाक (cervicitis) की तीव्रावस्था अल्पकाल तक रहती है और फिर वह जीर्णावस्था में परिणत हो जाती है । गर्भाशयग्रीवा कानाल में स्थित ग्रन्थियों में उपसर्ग स्थित हो जाता है जिसके कारण अन्तः यैवपाक ( endocervicitis ) होता है, गर्भाशयग्रीवा स्थूलित हो जाती है जिसका हेतु व्रणशोथात्मक शोथ होता है तथा उससे पूयीय स्त्राव निकलने लगता है । ग्रीवामुख पर शल्कीय अधिच्छद का विशल्कन होने उपरिष्ठ विद्रधिभवन या ग्रैव अपरदन ( cervical erosion ) इस अपरदन के कारण वहाँ पर स्तम्भकार अधिच्छद बन जाता है जो ग्रन्थियों की प्रणालियों के द्वारा बनाया जाता है और वहीं से फैलता है । आगे जीर्णावस्था प्रारम्भ होने पर ग्रन्थियों का परमचय (hyperplasia ) होने लगता है और निम्न ४ परिवर्तन देखने को मिलते हैं ::
लगता है जो वहाँ उत्पन्न कर देता है ।
१. प्रत्यारक्षणकोष्टिकाओं की निर्मिति (formation of retention cysts) २. गर्भाशयग्रीवा का तान्तविकस्थूलन ( fibrotic thickening of the cervix)
३. ह्रस्वगोलकोशीय भरमार ( small round cell infiltration ) ४. श्लेष्म पूयीय स्राव ( muco-purulent discharge )
गर्भाशयग्रीवापाक कुछ काल तक रहने के उपरान्त या तो मैथुन क्रिया से अथवा मासिक धर्म की प्रवृत्ति से जब यैवकानाल का मुख खुल जाता है तो उपसर्ग आरोहण करके गर्भाशय में प्रवेश करता है ।
उष्णवातीय गर्भाशयान्तः पाक (gonorrhoeal endometritis) गर्भाशय के अन्त में बहुत बड़े परिवर्तनों का जनक नहीं होता । उपसर्ग वहाँ स्थित ग्रन्थियों में समा जाता है और वहाँ से अन्य गम्भीर भाग में स्थित ग्रन्थियों तक चला जाता है जिसके कारण उन ग्रन्थियों से पूयात्मक स्राव होने लगता है । गम्भीर गर्भाशयीय ग्रन्थियों में उपस्थित उपसर्ग के कारण गर्भाशयपाक (metritis ) हो सकता है। जिसके कारण उपसर्ग गर्भाशय की प्राचीरों में व्रणशोथ उत्पन्न करने में समर्थ हो जाता है । उसकी तीव्रावस्था अल्पकालिक होती है फिर वह जीर्णावस्था में परिणत हो जाती है । यह स्मरणीय है कि बालिकाओं में मासिकधर्मचक्र के प्रवर्तित
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