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विकृतिविज्ञान
रिक क्षेत्रों पर भी होता है बच्चों में फुफ्फुसपाक के प्रारम्भ में प्राणदा नाडी के निरोध की प्रत्यावर्तन क्रिया (reflex action ) के कारण वैद्य को पर्याप्त भ्रम हो जाता है और फुफ्फुसपाक के स्थान पर वह उसे अन्त्रपुच्छपाक ( appendicitis ) या उदरच्छदपाक ( peritonitis ) या तीव्र सर्वकिण्वीपाक ( acute pancreatitis) समझने लगता है । ऐसे समय शीघ्रता करने की आवश्यकता नहीं है अपि तु धीरजपूर्वक फुफ्फुसों की परीक्षा करके फिर उदर की ओर ध्यान देना चाहिए यदि बिना इसका ध्यान दिये उदरच्छेद ( laparotomy ) शस्त्रकर्म कर दिया गया तो बालक की मृत्यु में कुछ भी सन्देह नहीं रह जाता। इस दिशा में विचार करने के लिए उत्साहित करने का कार्य ब्वाइड ने किया है ।
खडकी फुफ्फुस पाक
(Broncho-Pneumonia or Lobular Pneumonia)
खण्डीय और खण्डिकीय फुफ्फुसपाकों में महत्त्व का अन्तर यह माना जाता है कि एक में फुफ्फुस का एक पूरा खण्ड विकृत हो जाता है परन्तु दूसरे में फुफ्फुस में इतस्ततः थोड़ा थोड़ा क्षेत्र विकृत होता है तथा बीच का क्षेत्र पूर्णतः स्वाभाविक रहता है । एक में व्याधि एक ही फुफ्फुस खण्ड में देखी जाती है पर दूसरे में दो या अधिक फुफ्फुस खण्डों में रोग मिलता है । एक में एक फुफ्फुस पीडित मिलता है। परन्तु दूसरे में दोनों फुफ्फुसों में भी एक साथ रोग पाया जाता है। एक में व्रणशोथ एक दम आता है पर दूसरे में वह शनैः शनैः एवं उत्तरोत्तर वृद्धिंगत होता जाता है । एक में तापांश एक दम चढ़कर एकदम दारुण्य के साथ गिरता है पर दूसरे ( खण्डिकीय) मैं धीरे धीरे तापांश बढ़ता और धीरे धीरे ही अस्त होता है। एक (खण्डीय) में फुफ्फुस में उपसर्ग का काल अल्प समय तक रहता है और दूसरे में देखा जा सकता है । खण्डिकीय श्वसनक में फुफ्फुसच्छदपाक हल्की सी श्वासकृच्छ्रता पाई जाती है पर जब रोग का स्वरूप श्यावता और विषरक्तता के लक्षण भी रोगियों, बालकों तथा वृद्धों में प्रायः देखी जाती है ।
वह कई सप्ताह तक
( प्लूरिसी ) तथा उग्र होता है तो देखे जाते हैं । इस रोग का आक्रमण दुर्बल होता है इस कारण मृत्यु बहुधा होती हुई
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यह रोग शिशुओं में दूसरे वर्ष के आरम्भ में आद्य या द्वितीयक ( उत्तरजात) स्वरूप में देखा जाता है । शिशु पूर्णतः स्वस्थ होते हुए अकस्मात् श्वसनक से जब पीडित होता है तो वह आद्य ( primary ) खण्डिकीय फुफ्फुसपाक से व्यथित माना जाता है पर जब पहले उसे रोमान्तिका ( measles ) श्वग्रह ( whooping cough ), रोहिणी, इन्फ्लुएंजा आदि हो चुके हों तो उनके कारण होने वाला फुफ्फुसपाक द्वितीयक ( secondary ) फुफ्फुसपाक माना जाता है । फक्करोग ( rickets ), सहज फिरङ्ग, क्षीणता ( marasmus ) के कारण भी द्वितीयक फुफ्फुसपाक देखा जा सकता है । यह तो हुआ नवजात शिशुओं में इस रोग के कारणों पर प्रकाश | परन्तु वृद्धों
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