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विकृतिविज्ञान समीपस्थ लसग्रन्थियों में पाक पाया जाता है । प्राथमिक उपसर्ग और लसीकाग्रन्थिपाक के मध्य की लसवहाओं में भी पाक हो यह आवश्यक नहीं पर जब होता है तो वे लाल रेखा सदृश स्पर्शाक्षम होती हैं। तीव्र लसीकाग्रन्थिपाक साधारण (simple ) एवं सपूय ( suppurative ) दो प्रकार का हो सकता है। यदि उपसर्ग हलका है तो साधारण अन्यथा सपूय होता है। साधारण तीव्र लसीकाग्रन्थिपाक में सर्वप्रथम लसग्रन्थि सूज तथा फूल जाती है, उसमें रक्ताधिक्य हो जाता है जिसके कारण उसका वर्ण लाल हो जाता है। यदि कई ग्रन्थियों में पाक हो तो वे पृथक पृथक गिनी जा सकती हैं। ग्रन्थि के भीतर का पदार्थ मृदु एवं गोर्दमय (pulpy ) होता है जो स्थान स्थान पर थोड़ा थोड़ा रक्तस्रावाङ्कित होता है। अण्वीक्ष द्वारा देखने पर शोणावकाश (sinusoids ) रक्त से परिपूर्ण मिलते हैं तथा कोशोत्पादक केन्द्रों (germinal centres ) में प्रगुणन तेजी से होता हुआ मिलता है उसका प्रमाण बड़े बड़े जालिकीय कोशाओं में सूत्रिभाजिकीय अंकों ( mitotic figures) का मिलना है । अन्तश्छदीय कोशा भी सूजे हुए होते हैं तथा बड़े हो जाते हैं जो प्रगुणन को प्रमाणित करते हैं। __ आन्त्रिक ज्वर में लसग्रन्थियों के शोणावकाशों के कोशाओं का परमचय बहुत अधिक मिलता है बीच बीच में नाभ्यमृत्यु (focal necrosis) के क्षेत्र भी देखे जाते हैं।
साधारण लसीका ग्रन्थिपाक की प्रक्रिया थोड़ा उग्र होने पर सपूयलसीका ग्रन्थिपाक का कारण बन जाती है । यह प्रायः बाह्या या तलोपरिक ( superfeial) ग्रन्थियों में जितना अधिक मिलता है उतना गंभीर (deep) ग्रन्थियों में नहीं। पूय न होने पर एक तन्त्विमय निःस्राव ग्रन्थि को भर देता है जिसमें सितकोशीय पारगमन (leucocytic diapedesis) होता रहता है जिसके कारण ग्रन्थि के गह्वरों ( loculi ) में पूय भर जाता है और विद्रधि की उत्पत्ति प्रमाणित हो जाती है । पूयन के साथ साथ परिलसग्रन्थिपाक (periadenitis) ग्रन्थि के प्रावर तथा समीपस्थ ऊतियों में पाक होने से हो जाता है।
महास्रोत में उपश्लेष्मकला ( submucosa ) में उपस्थित लसाभसिम्म (lymphoid patches ) का उपसर्ग होकर पूयन होने से स्यूनिकीय विधि ( follicular abscess ) बन जाता है जिसके विदीर्ण हो जाने पर वहाँ स्यूनिकीय व्रण रह जाते हैं जिनके मुख आँतों में खुलते हैं। लसाभ उतियों के पूयन का सुधार तन्तूत्कर्ष द्वारा होता है।
जीर्ण लसीकाग्रन्थिपाक या अपची में निम्न लक्षण साधारणतया देखे जाते हैं:१. लसग्रन्थि की वृद्धि । २. जालिकान्तश्छदीय कोशाओं का प्रगुणन।। ३. थोड़ा या बहुत तन्तूत्कर्ष । इन्हीं तीन लक्षणों पर अन्य विशेष लक्षण अवलम्बित होते हैं।
जीर्ण लसीकाग्रन्थिपाक भी साधारण तथा विशेष करके दो प्रकारों में कहा जा सकता है। साधारण जीर्ण लसीकाग्रन्थिपाक गले की प्रन्थियों में उस समय
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