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२०५४
विकृतिविज्ञान विषय
विषय पृष्ठ | विषय
पृष्ठ ज्वर
३०२ ज्वर चातुर्थक ३३० । ज्वर फुफ्फुसयक्ष्मा में ५५४ - अन्तर्वेग ३७ - - त्रिदोषज है ३६६ - बहिर्वेग ३१७
अन्येधुष्क ३२९, ३४ - - पैत्तिक ३३७ मज्जागत ३५१ अपगम ४१५ -- - वातिक ६६६ मरुमक्षिका ४६८ अविराम ४६० - - श्लैष्मिक , मांसगत ३४८ अष्टविध ३५४ तन्द्रिक ४६४, ४६९ - मानस ३१६ असाध्य ३२१
तरङ्ग या
- मूषिकदंशज अस्थिगत ३५०
ऊर्मिमान् ४७३ - मेदोगत ३५० आगम
४१५ ताण्डव ६२ - रक्तगत ३४६ आगन्तु ३१६, ४५२ तृतीयक ३३०
- रसगत
३४५ आग्नेय ३१७
-दोषदृष्टया
वात
३५५ आन्त्रिक ४८१
भेद ३३५ --ऊष्मावैषम्य ३५७ - आन्त्रिक (देखो - तृतीयक वातकफो.
- ज्वर भी) ल्बण त्रिदोषयुक्त ३३६ --- चारकाल ३६० - आवर्तक ४७१ - तृतीयक वातपित्तो- -- दोषानुसार - उत्पत्तिका कारण ल्बणत्रिदोषयुक्त ३३६
लक्षण ४१२ रस की विरसता ४१३
- दण्डक ४६७ वातपित्तज २५ - उत्पत्ति की - द्वन्द्वज ४०६
लक्षण ४०८ कहानी ३८८
- -दोष वैषम्यादि --विषमारम्भ ३५७ - उष्णाभिप्राय ३१६
की क्रमेणोत्पत्ति ४१५ --वेदनावैषम्य ३५७
-- प्रकृतिसम -विषम ३२३,३९८,४७१ एकरूप - कफ
- की त्रिदोषासमवायारब्ध ४०६ ३८६ - - विकृति विषम
त्मकता ३३९ -
३८९ - काल -
- परिवर्तनीय - कास ४००
समवायारब्ध ४०६ - - निद्रा और
- द्विविध ३१६ परिस्थितियाँ ३३९ तन्द्रा विवेचन
वैकृत - नाजीर्णेन विना १३ ३९८
३१८ - निज
शारीर ३१६ - कफ पित्त लक्षण
- पञ्चविध तालिका ४१५
- शीताभिप्राय
३२३
- पित्त ३७१ -- शुक्रगत - कफ प्रतिश्याय ४००
- - उत्पत्तिकाल ३७५ - श्लेष्म पित्त - - श्वास ४०० --घ्राणमुखकण्ठोष्ट
श्वसनक - - सम्प्राति ३८७
तालुपाक ३७८ • सतत काल
४७४ - - पित्त लक्षण ३७२ सन्तत
३२४ - कालभेद ४८५
- पीत
४६८
- उत्पत्ति ३२५ की संख्या - पुनरावर्तन का
-और सम्प्राप्ति ३१५ आधार ३३५
अपतर्पण ३२८ - की सम्प्राप्ति ३०३ - पूर्वरूप
- दीर्घका- के सम्बन्ध में
- प्रत्यावर्ती ६३६
लानुबन्धिता ३२७ आधुनिक विचार ४५४ - प्रलेपक ३६६
- दोषों का - ग्रन्थीय ९४८ ! - प्राकृत ३१८ ।
गमन ३२६
३१६
४१३
३२८
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