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अनि वैकारिकी
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अतश्च प्रत्यवरकालं पृषत्रेण दीर्घसत्रेण यजता पशूनामलाभाद्गवामालम्भः प्रवर्तितः, तं दृष्ट्वा प्रव्यथिता भूतगणाः तेषां चोपयोगादुपाकृतानां गवां गौरवादौष्ण्यादसात्म्यत्वादशस्तोपयोगात्स्वादू पयोगाच्चोपहताग्नीनामुपहतमनसां चातीसारः पूर्वमुत्पन्न पृषधयज्ञे ।
शास्त्रकारों ने अतीसार के होने में निम्न कारणों को बतलाया है:
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१. गुरु, भारी कब्ज करने वाले पदार्थों का सेवन ।
२. अत्यधिक चिकनाई से युक्त तेल, घी या घासलेट के बने पदार्थों का सेवन ।
३. चिकनाई से शून्य रूखे पदार्थों का सेवन ।
४. अत्यन्त उष्णवीर्य द्रव्यों का सेवन ।
५. अत्यन्त पतले पदार्थों का सेवन अथवा पेय पदार्थों का सेवन या केवल जल का ही बहुत प्रयोग ।
६. अत्यन्त स्थूल प्रकृति पदार्थ जैसे पीठी के पदार्थ, लड्डू, खुरमा आदि का सेवन । ७. अत्यन्त शीतल पदार्थों का सेवन जैसे बर्फ- सोडा आदि का पीना ।
८. शास्त्र में जो विरुद्ध भोजन कहे हैं जिनमें कुछ संयोग विरुद्ध हैं जैसे दूध और मछली, कुछ देश विरुद्ध हैं, कुछ काल विरुद्ध हैं और कुछ मात्रा से विरुद्ध कहे गये हैं उनका प्रयोग |
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९. अध्यशन करना अर्थात् पहले भोजन के पूर्णतया पचने से पहले ही दुबारा भोजन कर लेना ।
हीन योग करना । १३. विष का प्रयोग ।
१०. अजीर्ण या अपक्क अन्न का सेवन |
११. विषमाशन अर्थात् अकाल भोजन ।
१२. स्नेहन या स्नेहपान का अधिक मात्रा में कराना, वमन, विरेचन, अनुवासन, निरूहणादि कर्मों का अत्यधिक उपयोग करना अथवा मिथ्या योग करना वा
१४. भय करना ।
१५. शोक करना ।
१६. दूषित जल वा दुष्ट दुग्ध का सेवन ।
१७. अत्यधिक मद्य का सेवन ।
१८. सात्म्य विपर्यय द्रव्यों का सेवन, सूखे दुर्बल मांस का प्रयोग ।
१९. ऋतु विपर्यय द्रव्यों का सेवन ।
२०. जल में अधिक काल तक रमण करना ।
२१. वेगों का विघात |
२२. उदर कृमि अथवा अर्श का होना ।
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उपर्युक्त कारणों को प्रदर्शित करने वाले कुछ सूत्र सुश्रुत ने इस प्रकार दिये हैं: गुर्वतिस्निग्धरूक्षोष्णद्रवस्थूलातिशीतलैः । विरुद्धाध्यशनाजाणैर्विषमैश्चापि भोजनैः ॥ स्नेहाद्यैरतियुक्तैश्च मिथ्यायुक्तैर्विषैर्भयैः । शोका दुष्टाम्बुमद्यातिपानैः सात्म्यर्तुपर्ययैः ॥ जलाभिरमणैर्वेगविघातैर्ऋमिदोषतः । नृणां भवत्यतीसारः"
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