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कमलदल - स्तुति ।
६, राग १० द्वेष ११, कलह १२, अभ्याख्यान १३, परपरिवाद १४, पैशून्य १५, अरतिरति १६, मायामृषावाद १७, मिथ्यात्वशल्य १८, ए अढारह पापस्थानकमाँहि जे कोइ कोधो करा व्यो अनुमोद्यो एवंप्रकारे श्रावक - धर्मे श्रीस म्यक्त्व मूल बारह व्रत चोवीसा सो अतिचार मांहि जिको कोई अतिचार पक्षदिवसमांहि सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणतां हुवो होय सहू मन वचन कायायें करी मिच्छा मि दुक्कडं ॥
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५१ - कमलदल - स्तुति । कमल-दल- विपुल - नयना, कमल-मुखी कम ल-गर्भ सम गौरी | कमले स्थिता भगवती ददातु श्रुत-देवता सौख्यम् ॥१॥
५२ - भुवन देवता-स्तुति । भुवणदेवयार करेमि काउस्सगं | अन्नत्थ ज्ञानादिगुणयुतानां, स्वाध्यायध्यानसंयमरतानाम् ।
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