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वृहद-अतिचार। ६५ प्रमुख पञ्चक्खाण पारवां वीसारयां, बेसतां नवकार भएयो नहो, ऊठतां दिवस-चरिमंन कीध नीवी, आंबिल, उपवासादिक तप करी काचु पाणी पीधु, वमन थयु॥ बाह्य-तप-त्रत-विषइओ०॥ ___ अभ्यंतर तप पायच्छित्तं विणो । गुरुकने मन सुद्धे आलोयणा लीधी नहीं। गुरु-दत्त प्रायच्छित्त तप लेखा शुद्ध पहुचाड्य नहीं। देव-गुरु-संघ-साहम्मी प्रते विनय साचव्यो नहीं। वाचना, प्रच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा, धर्मकथा लक्षण पंच विधि सिज्झाय कीधी नहीं। धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्यायु नही । कर्मक्षय निमित्त लोगस्स दस वीसनो काउ. स्सग्ग न कीधो ॥ अभ्यन्तर तप विषइओ॥
वीर्याचारना तोन अतिचार ॥ अणिगू. हियबलविरिओ, परिकमइ जो जहुत्तठाणोसु ॥ जुजइ अ जहाथाम, नायब्वो वीरियायारो॥१॥
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