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अभय रत्नसार ।
रूडी परें पाली नहीं । साधुतों धर्मे सदैव श्रावकतणे पोसह-पडिकमणे लीधे अष्टविध चारित्राचार - विषई जिको अतिचार० ॥
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विशेषतः श्रावकतणें धर्मे श्री सम्यक्त्व-मूल बारह व्रत | श्री सम्यक्त्व-तणा पांच प्रति चार; - संका कंख विगिच्छा, पसंस तह संथवो कुलिंगोसु । संका; - श्री अरिहंत तणां बल, अतिशय ज्ञान, लक्ष्मी, गांभीर्यादिक गुण, शाश्वती प्रतिमा, चारित्रियानां चारित्र, जिनवचन - तो संदेह कोधो । आकांक्षा; - ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, क्षेत्रपाल, गोगो, गोत्रदेवता । ग्रह - पूजा विणाइग, हनुमंत इत्येवमादिक ग्राम, गोत्र, देश, नगर, जूजू देव देहराना प्रभाव देखी रोगें, आतंक इहलोक - परलोकार्थे पूज्या, मान्या । बोद्ध, सांख्यादिक संन्यासी, भरडा, लिंगिया, योगी, दरवेश अनेराई दर्श नियानो कष्ट, मंत्र चमत्कार देखी परमार्थ
भगत,
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