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७५० भक्ष्याभक्ष्य. विचार । उत्सव मनाना ), श्राद्ध, बाल-विवाह आदि रिवाज छोड़ देने योग्य है।
प्यारी बहिनो ! इन बातों पर अवश्य हो ध्यान देना। इससे आपका बहुत उपकार होगा।
चौदह स्थानोंमें उत्पन्न होनेवाले संमुर्छिम जीवोंकी हिंसा, जो मनुष्यकी असावधानीसे हो जाती है। इसके विषयमें पूरा ध्यान रखना चाहिये।
१-जो लोग छोटे छोटे गांवोंमें रहते हैं, जिनके गाँवके पास नदी, तालाव, जंगल, खेत वगैरह हों, उन्हें चाहिये कि पायखानेके अन्दर न जा कर दिशा-फरागतके लिये बाहर मैदानमें चले जाया करें । स्वास्थ्यकी दृष्टि से भी यही उचित है और धार्मिक दृष्टिसे भी, क्योंकि बन्द पायखानों में बहुतसे संमूर्छिम मनुष्य पञ्चेन्द्रिय जीवोंकी उत्पत्ति और नाश हुआ करते हैं। अगर पायखाने में रोगी जाते हों, तो उनका रोग औरोंको भी हो जा सकता है । इसीलिये मैदानमें जाना चाहिए । यहाँ भी यह देख लेना चाहिए कि कोई कीड़े मकोड़े तो नहीं है। गीली जमीन भी बचा देनी चाहिये।
२-पेशाब भी ऐसी जगहमें करना चाहियो, जहाँ जल्द सूख जाये। किसीके पेशाब किये हुए स्थान पर पेशाब नहीं करना चाहिये । मोरी, पनाले वगैरहमें पेशाव करनेसे भी संमूच्छिन मनुष्य पंचेन्द्रिय जीवों तथा कीड़े आदि त्रस-जोवोंकी
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