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लघु-शान्ति स्तव। ४५ मनः प्रसन्नतामेति, पज्यमाने जिनेश्वरे ॥१८॥ सर्व-मङ्गल-माङ्गल्यं, सर्व-कल्याण-कारणम् । प्रधानं सर्व-धर्माणां, जैनंजयति शासनम्॥१६॥
४८-भुवनदेवताकी स्तुति । चतुर्वर्णाय संघाय, देवी भुवन-वासिनी। निहत्य दुरितान्येषा, करोतु सुखमक्षयम् ॥१॥
४६-वर-कनक सूत्र । ओवर-कणय-संख-विददुम-~मरगय-घणसंनिहं विगय-मोहं । सत्तरि-सयं जिणाणं, सव्वामर- पूइयं वन्दे ॥१॥ स्वाहा ॥ ओं भवरणवइवाणमंतर-जोइस-वासी विमाण-वासी य । जे केवि दु-देवा, ते सव्वे उवसमंतु मे ॥२॥ स्वाहा ॥
॥ वृहद-अतिचार ॥ ॥ नाणम्मि दंसम्मि य, चरणम्मि तवे य तह य विरियम्मि। आयरणं आयारो, इस एसो पंचहा भणिो ॥ १॥ ज्ञानाचार १,
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