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भक्ष्याभक्ष्य विचार ।
जरदालू, अंजीर, मूंगफली, सूखे नारियलकी गिरी, सुखी रायण, कच्ची खांड, सूखे अँगुर आदि अभक्ष्य हैं । कारण उनमें तद्वर्ण जीव होते हैं, कुन्धू आदि त्रस जीव पड़ जाते हैं और भुआ या काई जम जाती है । ताज़े तोड़े हुए बदाम, पिस्ता, पानीवाला नारियल उसी दिन काममें ला सकते हैं। जो बदाम या पिस्ते की मींगी बाज़ार में बिकती है, वह नहीं खानी चाहिये। एक दिनका फोड़ा हुआ नारियल, जिसका पानी निकाल लिया गया है, दूसरे दिन तक खा सकते हैं अगर उसका रंग बदल नहीं गया हो । कितने ही सूखे मेवे फागुन में भी अभक्ष्य माने जाते हैं। बात भी ठीक मालूम होती है : क्योंकि प्रायः देखा जाता है, कि चैत-बैसाख के दिनों में काली दाखमें कीड़े पड़ जाते है । इसी प्रकार ज़रदालू, अंजीर वगैरह पदार्थों में भी जीवोत्पत्ति हो जाती हैं, जिससे वे अभक्ष्य समझने चाहिये । बहुतसे व्यापारी गत वर्षकी दाख, अजीर, बदाम, पोस्ता, चिरौंजी आदि मेवे बेंचते हैं। ख़रीदते समय इनके विषय में पूरी सम्हाल रखनी चाहिये । जहाँ तक हो सके, ताजे माल ही ख़रीदने चाहियें। नहीं तो जाने-पहचाने हुए व्यापारीके यहाँसे हो मंगवाना चाहिये। नौकर चाकरोंके हाथसे मंगवाने में तो अकसर धोखा ही होता है ।
३ - चौमासे ( असाढ़ सुदी १५ से कार्तिक सुदी १५ तक सूखे हुए सागका * सुखोंता तो सर्वथा त्याग ही करना चाहिये ।
* श्राज कलके समयमें प्रायः सब तरहके सागोंको सुखोंता बनानेकी जो प्रथा हो रही है, वह सर्वथा त्याग करने योग्य है । यह कोई शास्त्रीय विधान
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