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चउकसाय सूत्र। तां, नित्यं मनो-वाञ्छितम् ॥ १॥ आधिव्याधि हरो देवो, जीरावल्ली शिरोमणिः। पार्श्वनाथो जगन्नाथो, नत-नाथो नृणां श्रिये ॥२॥ ४४-सिरि-थंभणय ठिय-पास-सामिणो।
सिरि-थंभणय-ठिय पास-सामिणो सेसतित्थ-सामीणं तित्थ-समुन्नइ-कारण-सुरासुराणं च सव्वेसिं ॥१॥ एसिमहं सरणत्थं, काउस्सग्गं करेमि सत्तीए। भत्तोए गुण-सुट्टियस्स संघस्स समुन्नइ-निमित्तं ॥२॥
४५-चउ-कसाय सूत्र । चउ-कसाय-पडिमल्लल्लूरण, दुजय-मयण-बाण-मुसुमूरण। सरस-पिअंगु-वण्णु गयगामिउ, जयउ पासु भुवण-त्तय सामिउ॥१॥ जसु तणु-कंति-कडप्प-सिणिद्धउ, सोहइ फणि मणिकिरणालिद्धउ । नं नव-जलहर-तडिल्लयलंछिउ, सो जिणु पासु पयच्छउ वंछिउ ॥२॥
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