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अभय-रत्नसार।
६६३ ए कही, गुणमालाथी देख। आगे बुधजन सोधज्यो, बाकी देश विशेष ॥ १६॥ ____ ढाल ॥३॥वीर जिनेसर उपदिसै-ए चाल ॥ सूत्र गुथे गणधरा, अरथै अरिहंत भाखै रे। ते श्रुतज्ञान नमं सदा, पाप तिमिर जिम नासरे ॥१॥ वाणी रे जिणंदनी, सुणज्यो चित्त हित आणी रे। तत्र रमणता अनुसर, सम्पूरण गुण खाणो रे। वा० २ ॥ विषय कषाय तजी करी, ग्यान भगत उर धारी रे। विधि संयुत जिनमन्दिरै, प्रभु मुख पाश जुहारी रे ॥ वा० ३॥ तप जप संजम आदरी, श्री श्रुतज्ञान निधानो रे। सदगुरु चरण नमो करी, संवरजोग प्रधानो रे ॥ वा०४॥ अक्षत लेइ ऊजला, गुंहली सुन्दर कीज रे । नाण दंसण चारित्रनी, ढिगली तीन धरीज रे॥वा० ५॥ चवद पर्व व्रत इण पर, सुगुरु सजोगे लेई रे। विधिसु पस्तक पूजिय, चित्त अति आदर देई रे॥ वा०॥६॥ इम तप संपूरण थयां, ऊजमणो हिव कीजै रे।
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