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अभय रत्तसार। ६०५ बाहू पडिलेहन कर बाँये हाथले मुखके आगे मुहपत्ति रख कर दाहिना हाथ गुरुके सामने रखे, अनन्तर शरीर नवाँ कर 'जंकिंचि अपत्तियं कहे। बाद जब गुरु 'मिच्छा मि दुक्कड़ें' कहे तब फिरसे दो वन्दना देवे । और 'आयरिय उवज्झाए' इत्यादि तीन गाथाएँ कह कर 'करेमि भन्ते, इच्छामि ठामि, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ' कह कर काउस्सग्ग करे। उसमें वीर-कृत षाडमासी तप का चिन्तन किंवा छह लोगस्स या चौबीस नमुक्कारका चिन्तन करे । और जो पच्चक्वाण करना हो तो मनमें उसका निश्चय करके काउस्सग्ग पारे तथा प्रगट लोगस्स पढ़े। फिर उकडू आसनसे बैठ कर मुहपत्ति पडिलेहन कर दो वन्दना देकर सकल तीर्थोंको नाम पूर्वक नमस्कार करे और 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पसायकरी पच्चक्खाण कराना जी' कह कर गुरुमुखसे या स्थापनाचार्यके सामने अथवा वृद्ध साधर्मिकके मुखसे प्रथम निश्चयके अनुसार
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