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अभय-रत्नसार । ६०३ समस्त श्रावकोंको वंद' कह कर घुटने टेक कर सिर नवाँ कर दोनों हाथोंसे मुंहके आगे मुहपत्ति रख कर 'सव्वस्स वि राइय०, पढ़े, परन्तु 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्, इच्छं' इतना न कहे। पीछे 'शक्रस्तव' पढ़ कर खड़े होकर 'करेमि भंते सामाइयं०, कह कर 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं जोमे राइयो' तथा 'तस्स उत्तरी, अन्नत्थ' कह कर एक लोगस्सका काउस्सग्ग करके उसको प्रारकर प्रगट लोगस्स कह कर 'सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं वंदण' कह कर फिर एक लोगस्स का काउस्सग्ग कर तथा उसे पार कर 'पुक्खरवदीवड्ढे सूत्र पढ़ कर 'सुअस्स भगवओ' कह कर 'आजूणा चउपहरी रात्रिसम्बन्धी' इत्यादि आलोयणाका काउस्सग्गमें चिन्तन करे; अथवा आठ नमुक्कारका चिन्तन करे । बाद काउसग्ग पार कर 'सिद्धाणं बुद्धाणं' पढ़ कर प्रमाजनपूर्वक बैठ कर मुहपत्ति पडिलेहण करे और दो वन्दना देवे । पीछे 'इच्छा' कह कर 'राइयं आलोउँ?'
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