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वंदित्त-श्रावकका प्रतिक्रमण सूत्र। २३ अस्स, सव्वस्स वयाइआरस्स ॥३४॥ वंदणवयसिक्खागा, रवेसु सन्नाकसायदंडेसु । गुत्तीसु अ समिईसु अ, जो अइआरो अ तं निंदे ॥३५॥ सम्मदिट्ठो जीवो, जइवि हु पावं समायरइ किंचि। अप्पो सि होइ बंधो, जेण न निद्धधसं कुणइ ॥३६॥ तं पुि हु सपडिक्कमणं, सप्परिआवं सउत्तरगुणं च । खिष्पं उक्सामेई, वाहि व्व सुसिक्खिओ विज्जो ॥३७॥ जहाविसं कुट्टगयं, मंतमूलविसारया । विज्जा हणंति मतेहिं, तो तं हवइ निविसं ॥३८॥ एवं अट्टविहं कम्म, रागदोससमज्जिअं। आलोअंतो अ निंदंतो, खिप्पं हणइ सुसावो ३६॥ कयपावोवि मणुस्सो, आलोइअ निंदिअ य गुरुसगासे होइ अइरेगलहुओ, ओहरिभरु व्व भारवहो ॥४०॥ आवस्सएण एएण, सावो जइवि बहुरओ होइ। दुक्खाणमंतकिरिअं, काही अचिरेणकालेण ॥४१॥ आलोअणा बहुविहा, नय संभरिआ पडि
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