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अभय रत्तसार ।
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लियो ए, गोयम पहिलो सोस तो ॥ बंधव संजम सुवि करे, अनि भूइ आवेय तो ॥ नाम लेइ आभास करे, ते पण प्रतिबोधेय तो ॥ २०॥ इ अनुक्रम गणहररयण, थाप्या वोर इग्यार तो ॥ तो उपदेसे भुवन गुरु, संयमं व्रत बार तो || बिहुं उपवासें पारणो ए, आपण विरहंत तो, गोयम संयम जग सयल, जय जय कार करंत तो ॥ २१ ॥ वस्तु ॥ इन्द्रभूइ इंद्रभूइ चढि - यो बहुमान हुंकारो करि कंपतो, समवसरण पहु तो तुरंतो ॥ जे संसा सामि सवे, चरमनाह फेड़े फुरंततो || बोधबीज सज्जायमनें, गोयम भवहि विरत || दिक्ख लेई सिक्खा सही, गणहरपयसंपत्त ॥ २२ ॥ भास ॥ आज हुआ सुविहाण, आज पचेलिमां पुण्य भरो ॥ दीठा गोमय सामि, जो नियनय अमिय झरो । समवसरण मकार, जेजे संसा ऊपजे ए ॥ ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनि पवरो ॥ २३ ॥ जीहां दीजें
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