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अभय रत्तसार ।
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तेहने जी, अवर न कोई प्रमाण ॥ ज० ॥ २३ ॥ देवलोक तिरा बारमें जी, जीरण घाल्यो बंध ॥ विना दान दियां लह्यो जी, उत्तम फल संबंध ॥ ज० ॥ २४ ॥ घडी एक सुर दुन्दुभि जी, जो न सुरांतो कान || लहितो जीरण तो सही जी, केवल अविचल ठांम ॥ ज० ॥ २५ ॥ राजा जीररणने दियो जी, अधिक मान सनमान ॥ मुतनगरमें थापियो जी, जोवो पुण्य प्रमाण ॥ ज० ॥ २६ ॥ दान दियो सुपात्रने जी, ते निष्फल नवि जोय ॥ पात्रदान अनुमोदना जी, जीरण जिम फल थाय ॥ ज० ॥ २७ ॥ इम जांगी अनुमोदना जी, दान सुपात्र रसाल ॥ दान देवे सुपात्रने जी, तेहने नमे मुनि माल ॥ ज० ॥ २८ ॥
॥ श्रीगौड़ी पार्श्व जिन - वृद्ध स्तवन ॥
॥ दूहा ॥ वाणी ब्रह्मा वादिनी, जागे जग वि ख्यात || पास तणां गुण गावतां, मुझ मुख वस-ज्यो मात ॥ १ ॥ नारंगे राहिलपुरे अहमदावादे
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