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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार। ३३७ संख संख अणंत, मणुज असन्नी असंख चवंत तेम उपजंत ॥ १२ ॥ बावीस सात दीन दस व रस सहस उकिठ, वसणई च्यारने तीन दिवसे तेऊने जिठ ॥ नर तिर तीन पल्य सुर नागर अयर तेतोस, व्यंतर पल्य अधिक लख वरष पल्य जोइस ॥ १३ ॥ असुरादिक दसने इक सागर अधिको आय, देसें ऊरणा दोय पल्यनो नवेय निकाय ॥ विगलने वार वरस गुणचास दिवस छम्मास ॥ अंतमुहुत्तजहन्ने पुढवाई दस रास ॥ १४ ॥ भुवनपती नारग ब्यंतर दस वरस हजार, पल्य तेना अडंस वेमाणिय जोइस धार, सुर नर तिरि नारगनें षट थावरने च्यार ॥ विग लने पंच पज्जत्ती.ए अधरम दार ॥ १५॥ सरब जीवने होय छए दिवसनो ओहार । होय न हो य पंचादिक दिस ए सब मझार, दीह कालकी चौविह सुर नागर तिरयंच ॥ विगलने हेउ पणसा सन्नि रहित थिर पंच ॥ १६॥ गब्भय म For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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