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अभय रत्नसार। ४ कुगुरु, ५ कुदेव, ६ कुधर्म परिहरूँ। ७ ज्ञान, ८ दर्शन, ६ चारित्र आदरूँ।
७-अंगकी पडिलेहणके २५ बोल 9
कृष्ण लेश्या १, नील लेश्या २, कापोत लेश्या ३ परिहरूँ ( मस्तक)। ऋद्धि-गारव १, रस-गारव २, साता-गारव ३, परिहरूँ (मुख)। माया-शल्य १, निदान-शल्य २, मिथ्यादर्शनशल्य ३ परिहरूँ ( हृदय )। क्रोध १, मान २, परिहरू (दहिना कन्धा ) । माया १, लोभ २ परिहरूँ (बायाँ कन्धा )। हास्य १, रति २, अरति ३ परिहरूँ (बायाँ हाथ )। भय १, शोक २, दुगंछा ३ परिहरू (दाहिना हाथ ) पृथ्वीकाय १, अप्काय २, तेऊकाय ३ परिहरू (बायाँ पैर )। वायुकाय १, वनस्पतिकाय २, त्रसकाय ३ परिहरूँ ( दाहिना पैर )।
* ये बोल कहते समय जिस स्थानका नाम कोसमें लिखा है, उस स्थानपर मुहपत्ति (मुखस्त्रिका) रखते जाना चाहिये।
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