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अभय रत्नसार
२२५ ॥ लध्वी स्त्रोछंदसि वीर स्तुतिः॥ वीरं देवं नित्यं वंदे १
जैनाः पादा युष्मान पांतु २ जैनं वाक्यं भूयादभूत्यै ३ सिद्धा देवी दद्यात्सौख्यम् ॥ ४॥
श्रीवीरजिन स्तुति। मूरति मनमोहन कंचन कोमल काय, सिद्धारथ नंदन त्रिसलादेवी सुमाय ॥ मृगनायक लंछन सात हाथ तनु मांन, दिन-दिन सुखदायक स्वामि श्रीवर्द्धमान ॥१॥ सुर नरवर किन्नर वंदित पद अरविंद, कामित भरपूरण अभिनव सुरतरुकंद ॥ भवियणने तारे प्रवहणसम निसदीस, चोवीसे जिनवर प्रणमु विसवा वीस ॥ अरथे करि आगम भाख्या श्रीभगवंत, गणधर ते गूथ्या गुणनिधि ज्ञान अनंत ॥ सुरगुरु पिण महिमा कह न सके एकांत,समरूं सुखदायक मन सुध सूत्र-सिद्धांत ॥३॥ सिद्धायिका देवी वारे
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