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वैविक : संहिताएं और साहित्य
आकार
प०सं०/पक्ति अक्षर दशा/परिया
विशेष विवरण
(०मी०) ___८ (क) १६४ १३.५
पंक्ति अक्षर दशा/परिमाण | लिपिकाल पृ०स०प्र० पृ० प्र०५० (अनु० छन्द में) " (ख) ८(ग) ८(घ) ९
। १० । | पूर्ण/४२ ।
१८७४ वि०
११
..
१६४ १३.५
पूर्ण/४८
१८७४ वि०
२५४३०
पूर्ण/९
२३४१०
पूर्ण/३५
२७४१६ ..
३
१२ | ३२ पूर्ण/३६
१६४१०
.
| १५ | पूर्ण/२५
१८४९ वि०
२४.४४ १०.६ । १४
| पूर्ण/१५४
१७२१ वि०
२५.५४ १०.८ । ७
६४ | पूर्ण/२१०
१६१७ वि० लिपिकाल की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण (भाद्रपद कृष्ण ५)
१२४१६.५
पूर्ण/५५
२५.१४१०.४ । २५
| पूर्ण/३४५
३१.५ ४ १६.६. २७७ | १५ | ५२ | अपूर्ण/७२८८
शब्दशक्ति के प्रसंग में न्यायशास्त्र के . अन्तर्गत व्याकरण विषय का दार्शनिक पद्धति से विवेचन सभी भारतीय दर्शनों का सार संक्षेप में वर्णित है। प्रथम तीन पत्र खण्डित हैं। साथ में 'तत्त्वप्रकाशिका' नामक टीका भी है
२८४१२
४२ | १० | ४८
अपूर्ण/६३०
२६४११
६ ६
५ २४ । पूर्ण/२४६
महर्षि कपिल प्रणीत प्रसिद्ध 'सांख्यसूत्र' मूल रूप में समुपलब्ध है