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कर्मकाण्ड
४०३
विशेष विवरण
आकार
पंक्ति अक्षर दशा/परिमाण लिपिकाल (से० मी०) प्र. पृ० प्र०५० (अनु० छन्द में)
८ (क) ८ (ख) ८ (ग) ८ (घ) ९ २१.५४ १३.५ । १२ ९ | २४ / पूर्ण/८१
१८.५४ १३ | ९| ६ | १५ | पूर्ण/ २५
२०.५४११
| १० | ९ | २० | पूर्ण/५६ ।
१८६३ वि० (आश्विनकृष्ण प्रतिपदा रविवार)
१०.८४ १९.५ | १ | ८७ | २० | पूर्ण/५४
५३४१९
| ४ | ३२ | १५ | अपूर्ण/६०
१३.४४९.९
पूर्ण/२८
१४४९.५
| पूर्ण/२४
वैदिक सन्ध्याविधि से पृथक् कालिका प्रीत्यर्थ अनुष्ठेय विधि
१८.५४११
पूर्ण/५१
२०x१०
| पूर्ण/२५
३५४१६.७
| १२ | ३४ ।
पूर्ण/५१
१९१०वि० (वैशाखकृष्ण २ सोमवार)
३१.७४ १४.८ | १४
अपूर्ण/२७९
१७.५४१०
| १२ | ९ | १० | पूर्ण/३४
२७.५४११ ४ | ४६ | ८ | ३३ | पूर्ण/३८०
तीन काण्डों के इस ग्रन्थ में सोमयामविधि का प्रतिपादन किया गया है